सवाल तो बनता है, अखिलेश यादव इतने ही मजबूत है, इतने ही लोकप्रिय हैं, यूपी में इतने हीं विकास की बयार बहाया है तो फिर उसे कांग्रेसी बैसाखी की जरुरत क्यों आ पड़ा?
आम जनता को यह समझ नहीं आ रहा है, अखिलेश यादव इतने ही मजबूत है, इतने ही लोकप्रिय हैं, यूपी में इतने हीं विकास की बयार बहाया है तो फिर उसे कांग्रेसी बैसाखी की जरुरत क्यों आ पड़ा? और बैसाखी की जरुरत किसे पड़ता है, इसको समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की आवश्यकता नहीं है।
अखिलेश यादव का कांग्रेस के साथ गठबंधन ने उसके अब तक के मिडिया मैनेजमेंट द्वारा बनाये गए छवि की पोल-पट्टी खोलकर रख दिया। अखिलेश यादव का 300 से भी कम सीट पर लड़ना और लूले-लंगड़े कांग्रेस को 100 सीटें देना बताता है, समाजवादी पार्टी का जमीनी आधार यूपी में कितना खिसक चुका है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी का ना तो पारंपरिक एलायंस है और ना हीं स्वभाविक एलायंस है। मुलायम सिंह यादव गैर कांग्रेसवाद का एक प्रमुख पिलर रहे हैं, उनके पार्टी का अपने वैचारिक विरोधी के गोद में गिर जाना बताता है अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी कितना कमजोर हो चूका है।
अखिलेश यादव अपनी इस कमजोरी को समझते हैं, तभी उन्होंने एक विदेशी फर्म को हायर कर अपनी इमेज विल्डिंग करने का बहुत प्रयास किया। इसी इमेज विल्डिंग के कारण हमें मिडिया के माध्यम से अखिलेश विकास पुरूष, सौम्य-संवेदनशील चेहरा दिखाई देता है, यूपी में विकास की आंधी चल रहा है। वहाँ ना कोई अब बेरोजगार है, ना कोई बिमार है। लेकिन इसके ठीक उलट यूपी का जमीनी यतार्थ बड़ा हीं विभत्स है। बलात्कार और अपराध, साम्प्रदायिक दंगा, भाई-भतीजावाद, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा का खस्ताहाल आदि अखिलेश के प्रचारात्मक
दावे की पोल खोल रहा है। भय, भूख और भ्रष्टाचार से आज यूपी त्रस्त है, अखिलेश उस बेबस आम लोगों को सेकुलरिज्म लॉलीपाप देकर देकर बहकाने की कुचेष्टा कर रहा है।
सबसे दयनीय स्थित तो कानून-व्यवस्था का रहा अखिलेश यादव के शासन में। मायावती के शासन में जो गुंडे जेल या अपने घरों मे दुबके हुए थे समाजवादी शासन आते हीं आजाद हो गए। शासन के सह पर उन गुंडों का नंगा नाच आज भी यूपी के लोगों के जेहन में ताजा है। इसका एक छोटा सा बानगी देखिए : मायावती के शासन मे जो कुंडा का गुंडा, गीदर की जिंदगी जी रहा था, अखिलेश के आते ही वो शेर की तरह दहाड़ने लगा और उसने अपना पहला शिकार वहाँ के नौजवान डीएसपी जियाउल हक को बनाया। क्या उस डीएसपी को आज तक इंसाफ मिला? पैसे और नौकरी देकर उस परिवार का मुंह बंद कर दिया गया, हत्यारा आज भी आजाद है, सत्ता सुख भोग रहा है।
ऐसे हजारों घटनाएं लोगों के जेहन में ताजा है कैसे अखिलेश ने ,समाजवाद को गुंडावाद में तब्दील कर दिया, भले ही ये मिडिया के आँखों से ओझल हो। अखिलेश इस बात को बखूबी जानता है, इसलिए उसने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है। अंतिम सत्य तो यही है अखिलेश तीसरे स्थान में अपने स्थिति को कुछ बेहतर करने की लड़ाई लड़ रहा है। राजनीती में अंतिम परिणाम आने तक कोई हार नहीं मानता है, तो फिर अभी चुनाव के शुरुआत में अखिलेश अपनी अवश्यंभावी हार को क्यों स्वीकार करेगा क्यों प्रचारित करेगा।
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