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क्या नोटबंदी पर मोदी सरकार को एक श्वेतपत्र नहीं लाना चाहिए ?

नोटबंदी के लगभग अब तीन महीने हो चुके, स्थिति अब सामान्य है। सरकार द्वारा नोटबदली की तय दो महीने के अवधि में जो हाहाकार का माहौल था, अब उतना ही नीरवता का माहौल है। सरकार से लेकर आम लोगों की जिंदगी अब पूर्ववत रफ़्तार पकड़ रहा है।

अब तक सरकार के पास भी नोट बदली से जुड़े सारे तथ्य गए होंगे। देश की जनता ने जिस धैर्य के साथ मोदी जी के आह्वान पर उनका साथ दिया, तो अब मोदी जी को भी चाहिए देश के जनता को नोटबंदी से जुड़े सारे तथ्य उसके सामने रखे। एक बृहत स्वेत-पत्र सरकार को लाना चाहिए :

जिसमें नोटबंदी की क्या आवश्यकता था,
सरकार को नोटबंदी से क्या अपेक्षाएं था,
किन-किन परिस्थितियों का सामना करते हुए ये महाअभियान सफल हुआ,
कौन-कौन से आंतरिक और बाह्य ताकत ने नोटबंदी के प्रयास को विफल बनाने का प्रयास किया,
आरबीआई से लेकर बैंकों की कैसी भूमिका रही,
क्या सरकार को इच्छित फल मिला,
भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर इसके प्रभाव,
कालाधन की कितनी वापसी हो पाई,
कालाधन और भ्रष्टाचार पर आगे की कारबाई की क्या रुपरेखा सरकार के पास है, आदि सभी प्रश्नों का उत्तर सरकार को स्वेत-पत्र के माध्यम से देना चाहिए।

आम लोगों के मन में नोटबंदी पर अनेक सवाल है। बहुत सारे लोगों ने उस समय कोई प्रश्न इसलिए भी नहीं किया, जिससे मोदी जी के इस महाअभियान में कोई बाधा उत्पन्न ना हो। कोई निहित स्वार्थी तत्व या दल इसका नाजायज फायदा नहीं उठाए। लेकिन अब जब सारी झंझावात समाप्त हो चूका है तो सरकार को आराम और तसल्ली से सारे प्रश्नों का उत्तर एक स्वेतपत्र के माध्यम से देश के सामने रखना चाहिए।

इन्ही प्रश्नो की फेहरिस्त में एक सवाल और है, क्या सरकार बेईमान और भ्रष्ट अफसरों और ब्यापारियों पर कारबाई करने में डर गया? नोटबंदी के पहले चरण में लग रहा था बेईमानों पर बड़ी कारबाई होगी, लेकिन ज्यों-ज्यों समय बीतता गया कारबाई के नाम पर परिणामजनक कुछ दिखाई नहीं पड़ा। जबकि बहुत मामले तो इतने साफ-साफ था की सरकार को कारबाई करने के लिए अतिरिक्त तथ्यों की आवश्यकता नहीं था। पुलिस और आईटी के छापे में जितने नए नोट पकड़े गए , उसके लिए कुछ मामलों को छोड़कर किसी बैंक वालों पर कोई केस तक नहीं हुआ। जबकि मामला स्पष्ट था जितने नए नोट पकड़े गए सब किसी ना किसी बैंक से ही लाए गए थे। आरबीआई से सीरियल में बैंक को नोट भेजे गए थे, पकड़े गए नोटों के सीरियल नंबर से ये पता लगाना कोई मुश्किल नहीं था की किस बैंक के किस ब्रांच से नोटों की कालाबाजारी हुआ है। यदि सरकार कारबाई के मूड में होता तो लाखों धनपशुओं के साथ हजारों बैंक के अफसर अभी जेल में होते। इसी से स्पष्ट है की नोटबंदी के अंतिम चरण आते-आते सरकार दवाब में गया और इच्छित कारबाई जनता को दिखाई नहीं पड़ा।

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