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जगदम्ब अहीं अबिलम्ब हमर !

जगदम्ब अहीं अबिलम्ब हमरहे माय आहाँ बिनु आश ककर-2  

जँ माय आहाँ दुख नहिं सुनबई,  जाय कहु ककरा कहबै।  
करु माफ जननी अपराध हमर, हे माय आहाँ बिनु आश ककर। 
जगदम्ब.....

हम भरि जग सँ ठुकरायल छी, माँ अहींक शरण में आयल छी
देखु हम परलऊँ बीच भमर, हे माय आहाँ बिनु आश ककर। 
जगदम्ब.....

काली लक्षमी कल्याणी छी, तारा अम्बे ब्रह्माणी छी
अछि पुत्र-कपुत्र बनल दुभर, हे माय आहाँ बिनु आश ककर।।
जगदम्ब.....


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