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सामाजिक बदलाव की सच्ची तस्वीर देखना हो तो आइए हमारे गांव(बलनी) के दुर्गा पुजा के पंडाल में।

आज अपने गांव (बलनी) के दुर्गा पूजा पंडाल में माँ भगवती के दर्शन करने गया था।

सामाजिक बदलाव का बहुत बड़ा प्रतीक है हमारे गांव का दुर्गा पूजा। दिल्ली जैसे महानगरों में एयरकंडीशन में बैठे समाजशास्त्री को समाज में हो रहे बदलाव का सकारात्मक पक्ष ढूंढने हमारे जैसे गांवों में आना चाहिए।

एक ब्रह्मण बहुल गांव में दुर्गा पूजा का आयोजन गांव के गरीब पिछड़े और दलित लोग मिलकर कर रहे हैं। ये अलग बात है पूजा में तन मन धन से सहयोग ब्रह्मणों के साथ-साथ सभी जाति के लोग करते हैं। लेकिन दूर्गा पूजा के मुख्य आयोजक तो गरीब पिछड़े और दलित हीं है। जबकि पहले यही पूजा-पाठ का आयोजन ब्रह्मणों के भरोसे हीं होता था, बांकि जाति मात्र सहयोगी की भूमिका में होते थे।

लगभग ये बदलाव मैंने पूरे मिथिला में महसूस किया। शिव की नगरी देवघर से लेकर मां दुर्गा की साधना स्थली उच्चैठ जहां जहां जाने का मौका मिला सभी मंदिरों जिस जाति की समाज में जितनी संख्या है मंदिर- मेलों में उसकी उतनी हीं उपस्थिति देखने को मिला।

इसलिए दिल्ली में दिलीप मंडल जैसे क्रिप्टो क्रिश्चियन बैठकर चाहे जितनी वैमनश्यता फैला ले, लेकिन ग्राउंड पर स्थिति उससे बिलकुल अलग है। ये ग्राम्य जीवन का बहुत हीं सकारात्मक पक्ष है। उदारीकरण के पश्चात जो समाज के सभी वर्गों में संपन्नता आया है उसका निशानी उसके रहन-सहन के साथ-साथ धार्मिक आयोजनों में भी दिखने को मिलने लगा है।

#बलनी #मिथिला #दुर्गापुजा

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