एक बलात्कारी बाबा गुरमित सिंह की गिरफ्तारी, प्रहसन और मूर्खताओं के भंवर में हिचकोला खाता देश।
एक बात बताइए जब बाबरी मस्जिद को ढहा रहे थे तब कानून का पालन कर रहे थे या तोड़ रहे थे? तो क्या वहाँ कानून तोड़ने के अपराध में इकट्ठा भीड़ पर पुलिस को तोप चला देना चाहिए था? कारसेवकों पर गोली चलवाने के लिए हीं आमलोग आजतक मुलायम सिंह यादव को मुल्ला मुलायम कहते आए हैं।
वैसे हीं राम रहीम के मामले में सोचिए। बलात्कार गुरमित सिंह उर्फ राम रहीम ने किया है उसे आप तोप से उड़ा दिजीए लेकिन उसके समर्थक कोई अपराधी नहीं आम नागरिक है उसके लिए ऐसी भाषा गलत है। आम नागरिक के लिए हत्या, गोली, बंदूक, पुलिस, सेना आदि की भाषा गलत है। जैसे कारसेवक आम नागरिक थे उनकी हत्या गलत था, वैसे हीं राम रहीम के भक्त भी आम नागरिक थे उसका हत्या गलत है।
वहाँ 36 लोगों की मौत की जिम्मेदारी कोर्ट और हरियाणा प्रशासन की बनती है। वो दोनों चाहते तो राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद भी इतने जनधन की हानि को रोका जा सकता था। 5 लाख लोग शहर को घेरे खड़ा हो ऐसे माहौल में फैसला एक दो दिन के लिए टाला जा सकता था। स्थिति को अनुकूल करने के बाद फैसला दिया जा सकता था। दो चार दिन की देरी में कोई आसमान नहीं फट जाता।
कोर्ट, प्रशासन और मिडिया ने ऐसा समा बांधा, लग रहा था जैसे राज्य अपने नागरिकों पर नहींं देश पाकिस्तान पर हमला कर रहा हो। और हम मिडिया के कैमरों से मरते दुश्मन को देखकर आनंदित हो रहे थे, ताली बजा रहे थे।
हम सबकी मूर्खता के कारण हीं एक बलात्कारी बाबा गुरमित सिंह उर्फ राम रहीम की गिरफ्तारी प्रहसन में तब्दील हो गया।
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