बकरीद के नाम पर हत्या और क्रूरता का सामुहीक महोत्सव बंद होना चाहिए।
मुसलमानों द्वारा कुर्बानी के नाम पर लाखों पशुओं की हत्या एक दिन में करने पर जब सवाल उठाया गया तो तुरंत सेकुलर पत्रकारों ने हिंदुओं के बलि प्रदान के ओट में इस भीषण हत्या और क्रूरता का बचाव करना शुरू कर दिया।
हाँ हिंदुओं में बलि प्रदान होता है लेकिन केवल कुछ सीमित एरिया में। जैसे-जैसे समाज में जागरूकता आ रहा हिंदुओं द्वारा बलि प्रदान कम होते जा रहा है। लेकिन मुसलमानों में ऐसा नहीं हो रहा है, आजतक मुसलमानों में इस सामुहीक क्रूरता के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा। जबकि हमारा देश संवैधानिक रूप से एक सेकुलर देश है ऐसा कोई कृत्य किसीको नहीं करने देना चाहिए जिससे दूसरों को तकलीफ है। हिंदुओं में एक बड़ा वर्ग है जो वैष्णव मत का है उसी तरह जैन मतावलंबी भी पूरी तरह अहिंसक होते हैं कम से कम इनका खयाल कर देश में हत्या और क्रूरता का उत्सव नहीं होना चाहिए। धार्मिक सुधार की इस्लाम में कोई प्रथा नहीं है, इसलिए इस्लाम के मॉडर्नाइजेशन की आवश्यकता समय की मांग है जिससे बकरीद के नाम पर हिंसा के महोत्सव की कुप्रथा बंद हो।
कभी हमारे भी गांव मे मुडन-उपनयन में बलि प्रदान करने की प्रथा था, लेकिन अब नहीं हो रहा है। हमलोगों के मुडन-उपनयन के पहले से हीं ये प्रथा बंद है, इसलिए कोई अब इस तरह की मनौती भी नहीं मांगता है।
अयोध्या के महात्माओं का हमारे गांव बहुत आना होता है। वे सारे महात्मा वैष्णव मत के होते हैं, उन्हीं महात्माओं के प्रभाव के कारण हमारे गांव में बलि प्रदान की प्रथा बंद हुआ।
इस्लाम में स्वतः सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है, इसलिए इस तरह के कुप्रथा कानून के डंडों द्वारा हीं बंद हो सकता है। जैसे तीन तलाक जैसी कुप्रथा को बंद करने के लिए न्यायालय को डंडा चलाना पड़ा, वैसा हीं बकरीद के नाम पर हत्या और क्रूरता के सामुहीक महोत्सव पर डंडा चलाने की आवश्यकता है।
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