जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई। **********************************************
बिलकुल सच है,
जब तक खुद दर्द ना हो तब तक दूसरे के दर्द का वो तीब्र अहसास नहीं
हो पाता है।
औरत होकर जीना संसार का सबसे बड़ा दुस्साध्य का काम है। जब तक केवल और केवल मर्द बनकर जिया, तब तक उस श्रम का अहसास नहीं हुआ
जो एक औरत घर के अंदर रहकर करती है।
हुआ ऐसा, रविवार को श्रीमती जी सब्जी बना रही थी कड़ाही का सारा गरम तेल हाथ
पर गिर गया। रविवार था छुट्टी का दिन था मैं भी घर पर और बच्चे भी घर पर ही था।
औरतों को जो दर्द सहने का स्वाभाव है, उन्होंने तुरंत किसीको नहीं कहा
खुद प्राथमिक उपचार करने लगी। खैर एक मिनट के अंदर ही मुझे नजर पर गया तो जितना
मुझे जानकारी था उस अनुरुप मैंने प्राथमिक उपचार किया। फिर डाक्टर से
दिखाया, अब बहुत हद तक आराम है।
घाव में कोई संक्रमण ना हो इसलिए घरेलू कामों से उनको अभी आराम दे
दिया है। अब सबेरे उठता हूँ,
आँख-मुंह भी कौन धोए पहले घर में झाड़ू लगाता हूँ। बेटी स्कूल जाएगी
साढ़े सात बजे, तो उसके लिए ब्रेकफास्ट बनाता हूँ। स्कूल वाले ने बाजार का कोई भी
सामान लाने-खाने से मना कर रखा है, इसलिए मजबूरी है घर से ही बना कर
देना होगा। उसके बाद अपने लिए भी लंच तैयार करता हूँ। फिर नहाना-धोना, पूजा-पाठ करना, दो रोटी खाना
और ऑफिस के लिए भागना।
बेटी को स्कूल के लिए तीन दिन से रोज चेंज करके कुछ ना कुछ बना कर
दे देता था। आज क्या बना कर दूँ,
जो कम समय में बनकर तैयार भी हो जाए और टेस्टी भी लगे। इसका हल http://nishamadhulika.com/1171-missi-paratha-recipe.html
से मिला। वेबसाईट से पढ़कर फटाफट बेटी लिए दो "मिस्सा मसाला
परांठा" बनाया। एक पराठा दही और निम्बू के अचार के साथ घर में खा खाई, दूसरा स्कूल के
लिए पैक कर दिया।
ऑफिस के लिए मैं 11
बजे निकलता हूँ इसलिए इतना ये संभव हो पाता है, नहीं तो बहुत
बड़ा मुश्किल था। संयुक्त परिवार की क्या सार्थकता है, यहाँ मालूम होता है और एकल परिवार
के खामी का भी अनुभव होता है। पत्नी के दशांश काम भी नहीं किया, लेकिन इसी 5 दिन के
पार्टपार्ट-टाईम काम ने होश पाख्ता कर दिया है। रोज भगवान से
प्रार्थना करता हूँ जल्दी से इन्हे स्वस्थ कर दे और इस नये कार्यभार से मुझे
मुक्ति मिले।
No comments: