कहते है, सतर्कता गई दुर्घटना हुई, लेकिन कभी कभी ज्यादा सतर्कता भी दुर्घटना को जन्म देता है। ============================================
#रामनवमी
बहुत पुरानी आपबीती है, मैं दरभंगा में अपनी दवा के दुकान पर बैठा करता
था। आज की ही तरह रामनवमी का दिन था। दरभंगा का रामनवमी वैसे भी बहुत ही आकर्षक और
लोकप्रिय हुआ करता था। शस्त्रों से सुसज्जित शोभायात्रा शहर में निकलता था। महीनों
से लडके लोग अपने-अपने अखाड़ों में उसकी तैयारी करते थे। शहर के नाका नंबर 5 पर सभी अखाड़ों के झंडों का मिलन होता था। बहुत भीड़ होता था, पैदल चलना भी
मुश्किल।
जब शाम होने को आया तो मैं भी दुकान को बंद कर मेला देखने निकल गया। उस दिन कुरता पायजामा पहन रखा था। उस समय मोबाईल युग आया नहीं था इसलिए पाकेट भी हल्का था। 40 रुपया रखा मेला में कुछ खाने-पीने के लिए, उस समय के हिसाब से इतने पैसे काफी था अकेले पर खर्चा करने के लिए।
पैसा पाकेट में रखा तो मन में शंका हुआ कोई पाकेट
ना मार ले, इसलिए पैसे को डिवाइड करके 20 - 20 रुपये दोनों पाकेट में रख लिया। जो चलो एक पाकेट मारेगा तो
दूसरा पाकेट तो कम से कम बचेगा। दोनार से निकल गया सी एम कालेज की ओर, जो वहां से
जुलूस में शामिल हो जाऊँगा। जुलुस में शामिल हो गया, दोनों पाकेट को
मुठ्ठी से पकड़कर। मेला का आनंद ले रहा था, उर्दू (मोहल्ला)
में एक जगह बहुत भीड़ था आगे बढ़ना बहुत ही मुश्किल था। मैंने हाथ से भीड़ को चीरकर
आगे आगे बढ़ने का रास्ता बनाया। मेरा ध्यान अब पाकेट के सुरक्षा से हटकर आगे निकलने
की ओर गया, फिर वही हुआ जिसका आशंका था। पाकेट पर पुनः हाथ रखा तब तक दोनों
पाकेट को पाकेटमार साफ कर चुका था। अपनी अब तक की बरती गई सुरक्षा को भेदने में
सेकेण्ड भी नहीं लगा। सारी अति सतर्कता धड़ा का धड़ा ही रह गया, वो मुझसे भी
सतर्क निकला और एक ही मौके में मेरे पाकेट को खाली कर गया। अब इसे
क्या कहेंगे ?
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