नितीश बाबू आपको खवाब की नहीं, उन्माद की बीमारी हो गया है। ======================================
ये कहावत नितीश कुमार पर बहुत ही सटीक बैठता है, "नौ सौ चूहे खाकर
बिल्ली हज को चली"
नौ साल ही नहीं करीब 15 साल तक संघ के आशीर्वाद से संघ के छाया में रहकर नितीश कुमार राजनितिक रूप से परिपक्व हुआ जवान हुआ और आज इस मुकाम तक पहुंचा है। इसके खून का एक एक कतरा संघ का है। जब नितीश कुमार जी अपने को संघ से मुक्त नहीं कर सकते तो फिर भारत को संघ से मुक्त करना उनका एक खवाब नहीं सिवा पागलपन है।
नितीश बाबू अपने से बड़े लकीर को छोटा करने के लिए उससे बड़ा लकीर खींचना पड़ता है। इतना तो आपने समाज के बिच में रहकर सुना होगा। क्या आज आपकी ये हैसियत है, संघ से बड़े संगठन खड़ा करने का ? सच तो यही है आप संघ तो क्या संघ के छोटे से किसी अनुषांगिक संगठन के बराबर आने में अभी आपको कई जन्म लेने पड़ेंगे। आपके उन्माद भरे बिचार से लगा, इतने बरस संघ के छाया में रहने के बावजूद आपने ना तो संघ को जाना, ना संघ के शक्ति को जाना और ना ही संघ भारतीय समाज में किस तरह समाहित है उसको जाना।
आपको पता है ना संघ मुक्त भारत बनाने के लिए पहले आपको संघ से बड़ा बनना
होगा। किसी को सुपारी देकर या किसी से सुपारी लेकर संघ को छोटा नहीं किया जा सकता है।
समाज का ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहाँ संघ कार्य नहीं कर रहा है ? आप तो केवल एक राजनितिक
क्षेत्र में काम कर रहे है, फिर आपको इतना घमंड है। आपसे बड़ा राजनितिक दल तो संघ के
पास पहले से ही है, पहले उससे तो बड़े राजनितिक दल तो बन जाइए फिर संघ के बारे में सोच
लीजिएगा।
संघ को समाप्त करने का खवाब देखने वाले आप कोई पहला व्यक्ति नहीं है।
जब 1925 में संघ ने आकर लिया तभी अंग्रेजों ने इसको समाप्त करने की बहुत कुचेष्टा किया।
क्योंकि संघ उसके बृहद इसाई साम्राज्य के फैलाव का सबसे बड़ा रूकावट था। स्वतंत्र भारत
में अंग्रजों के उतराधिकारी नेहरू और उसके राजवंश ने दो-दो बार संघ पर प्रतिबन्ध लगाया,
लेकिन उस प्रतिबन्ध से संघ कुंदन के मानिंद और दमकते हुए बाहर निकला। वो भी तब जब कांग्रेस
पार्टी का एक क्षत्र राज इस देश में था, जनता में इस पार्टी और उसके नेता के प्रति
भारी अंधश्रद्धा था। और आप तो उस नेहरू राजवंश के पिद्दी के भी बराबर नहीं है फिर कैसे
भारत को संघमुक्त भारत बनाएंगे ?
नितीश बाबू एक बार अपना हेल्थ चेकअप जरूर करवा लीजिए, आपको खवाब की
बीमारी नहीं उन्माद की बीमारी हो गया है।
No comments: