डा राम विलास शर्मा : भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के भाषाई और सांस्कृतिक इतिहास को समझने में सबसे बड़ी बाधा "भारत पर आर्यों के आक्रमण का अवैज्ञानिक सिद्धांत है"। ==========================================
पश्चिमी देशों ने अपनी श्रेष्ठता साबित करने और भारत को
आर्य द्रबिड़ के रूप में विभाजित करने के लिए बहुत सधा हुआ एक मनगढंत कहानी बना कर
परोसा। जिसे आज भी भारत के वामपंथी इतिहासकार शिक्षाविद तोतारटन्त की तरह रटते आ
रहे है। रटते ही नहीं है, इसे पाठ्यक्रम तक में
पढ़ाते आ रहे है। "आर्य भारत के मूलनिवासी नहीं है, आर्यों ने ईरान से आकर भारत में बसा है। आदि आदि
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प्रसिद्द मार्क्सवादी आलोचक डा रामविलास शर्मा अपनी
ख्यात पुस्तक "इतिहास दर्शन" में पश्चिमी देशों की इस कुत्सित प्रयास का
बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से सिलसिलेवार पर्दाफाश किया है। विद्वान लेखक इसके प्रथम
अध्याय की शुरुआत इन्ही पंक्तियों से करते है :-
डा राम विलास शर्मा : भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के भाषाई और सांस्कृतिक इतिहास को
समझने में सबसे बड़ी बाधा "भारत पर आर्यों के आक्रमण का अवैज्ञानिक सिद्धांत
है"। यह सिद्धांत उस भाषाविज्ञान की देन है जिसका विकास उन्नीसवीं सदी में
यूरोपियन जातियों के साम्राज्यवादी प्रसार के दौर में हुआ था। इस
भाषाविज्ञान "इण्डोयूरोपियन" भाषाओँ के आदि श्रोत को एशिया से उठाकर
पश्चिम में स्थापित कर दिया, भारत से भाषातत्वों के
प्राचीन निर्यात को उसने आयात में बदल दिया। भाषा तत्वों का निर्यात पूरब से पश्चिम की ओर हुआ था, इस भाषा विज्ञान को उसने पश्चिम से पूरब की ओर कर दिया। आयात करने वाला देश हुआ भारत और निर्यात करने वाला देश
हुआ यूरोप का कोई अज्ञात, आदिम, आर्य प्रदेश। भारत अपनी मौलिक भाषाई विरासत से एकबारगी बंचित हो गया। यूरोप की हमलावर जातियों ने उत्तरी, मध्य और दक्षिणी अमेरिका की विकसित संस्कृतियों का नाश
किया, मूलनिवासियों का संहार कर उसकी जमीन ली, उस पर स्वयं बस गए, बचे हुए आदिवासियों को जंगलों और पहाड़ों में खदेड़ दिया।
अपने कारनामों का यह नक्शा उन्होंने प्राचीन भारत पर चिपका दिया।
अब सवाल उठता है जब राम विलास शर्मा ने इतनी स्पष्टता से
ये साबित कर दिया है,आर्य के बाहर से आने का
सिद्धांत गलत है बल्कि गढ़ा हुआ है फिर ये बामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा आदि ने इतने दिनों तक झूठ का साथ क्यों दिया? क्या इन बुद्धिजीवियों पर विदेशी प्रभाव है, जो अपने ही इतिहास को दीन हीन दिखाते है? या ये नकलची बुद्धिजीवी है, जो आँख मूंदकर पश्चिमी विचार को बिना जाँचे-परखे स्वीकार
कर लेते है और देश पर थोप देते हैं।
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