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कम्युनिस्टों के भारत बिरोधी विचारधारा का सच। =====================================

आपने कभी देखा है, स्वतंत्रता से लेकर आज तक जब कभी हिन्दुओं पर मुस्लमानों या ईसाईयों का आक्रमण हुआ है, तब कम्युनिस्टों ने हिन्दुओ का साथ दिया हो ?
लेकिन आपने देखा होगा जब कभी मुसलमानो या ईसाईयों के साथ छोटी सी घटना घटता है, यही कम्युनिस्ट हिन्दुओं के खिलाफ दिन-रात एक कर देता है। कम्युनिस्टों के शब्दावली में जितने भी वीभत्स गाली होता सबका प्रयोग हिन्दुओं के खिलाफ होता है।

अब सवाल उठता है, आखिर कम्युनिस्ट हिन्दुओ के खिलाफ इतना आक्रामक क्यों है ? इसके मूल में जाने के लिए हमें ये देखना होगा इस विचारधारा की उत्पति और पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा का श्रोत क्या है। भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की उत्पति कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की एक शाखा के रूप में हुई। रुसी कम्युनिस्ट पार्टी इसका प्रेरणाश्रोत है। रुसी कम्युनिस्ट पार्टी इसका दिशा निर्देशक हुआ करता था। यानि अपने जन्मकाल से ही भारत की कम्युनिस्ट पार्टी भारतीय विचारधारा से विमुख रहा है। जैसा की भारत एक हिन्दू बहुल देश है हजारों साल की इसकी सभ्यता संस्कृति है। यही संस्कृति हिन्दुओं को एक रखे हुआ है और यही संस्कृति भारतीयता की आत्मा है। 

इसलिए कम्युनिस्टों ने भारत को कमजोर करने के लिए, हिन्दुओं को कमजोर करने की, उसके संस्कृति और इतिहास को बदनाम करने की एक सुविचारित षड्यंत्र किया। वामपंथी बौद्धिकों ने ये साबित करने का कोशिश किया की इस्लाम के आगमन से पहले भारतियों की कोई सभ्यता संस्कृति नहीं था। भारत एक देश नाम की कोई इकाई नहीं था। हिन्दू कोई धर्म नहीं है ये एक ब्राह्मणवादी विचारधारा है जो निचली जातियों पर अत्याचार करता है। रोमिला थापर, बिपिन चन्द्र, हरबंश मुखिया आदि बौद्धिकों ने इतने सालों में यही साबित करने की कोशिश करता रहा है। इस्लाम और ईसाइयत महान है और हिंदुत्व पिछड़ा हुआ बिचारधारा है। 

आज जो कुछ नव बौद्धों( ईसाईयों) द्वारा हिन्दू धर्म को ब्राह्मण धर्म के रूप में निरूपित किया जा रहा है, उसका असल बौद्धिक श्रोत यही एकेडमिक कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग है। भारत को खंडित करने के लिए इन्होने समाज में जो जहर भरा है, वो अब देश के सभी भागों में दिखाई दे रहा है। यही बामपंथी विद्वानो ने एक थीसिस निरूपित कर समाज को खंडित करने का प्रयास किया, "आर्य बाहर से आया हुआ है और यहाँ के मूल निवासी द्रबिड़ और आदिवासी है। जिसपर आर्यों ने आजतक अत्याचार करते आया है"। जबकि कम्युनिस्टों का असत्य प्रचार उस समय धराशाही हो गया जब डीएनए टेस्ट से साबित हो गया की आर्य और द्रबिड़ दोनों का मूल यही भारत वर्ष है।

आज जम्मू-कश्मीर के बारे जो कुतर्क भारत के बौद्धिक कम्युनिस्ट कर रहे है, कभी ऐसा ही कुतर्क ये परतंत्र भारत में पाकिस्तान के लिए किया करते थे। मुस्लिम लीग ने धार्मिक आधार पर अलग पाकिस्तान की मांग किया इसके पीछे उसका सोच था, "हमारे पूर्वज इस देश पर हजारों साल तक शासन किया, इसलिए अंग्रेजों के जाने के बाद ये अधिकार हमें स्वतः मिलना चाहिए"। उसकी इस सोच को और आगे बढ़ाते हुए कम्युनिस्टों ने कहा भारत को एक राष्ट्र मानने की थ्योरी को नकार दिया। उसने धर्म के आधार पर मुसलमानो के अलग राष्ट्र पाकिस्तान के लिए ना सिर्फ सिद्धांत गढ़ा बल्कि उसका पूरा समर्थन किया। आज स्वतंत्र भारत में यही कम्युनिस्ट कश्मीर को भारत का अंग मानने से इंकार कर रहे है। कश्मीर पर भारत का जबरदस्ती कब्ज़ा का शगूफा छोड़ते रहते है। जबकि सच यही है कश्मीर में भी भारत अन्य राज्यों की तरह चुनाव होता है और वहां के लोग अपने मतों से लोकप्रिय शासन का गठन करते है। लेकिन फिर भी कम्युनिस्ट अपनी गन्दी मानसिकता को लेकर कभी चुनाव तो कभी वहां सेना की उपस्थिति पर सवाल खड़ा कर देश खिलाफ अपनी नियत दिखाने से कभी नहीं चूकते है।  

इसी तरह कम्युनिस्टों ने जैसी बेरहमी से हिन्दुओं खिलाफ "सेकुलर" शब्द का अस्त्र के रूप में प्रयुक्त किया, इतिहास में ऐसा उदाहरण मिलना दुर्लभ है। मुसलमान जिहाद करे और ईसाई लोभ-लालच दिखा कर धर्मांतरण करे फिर भी कम्युनिस्टों के नजर में सेकुलर है। यदि हिन्दू भूल से भी प्रतिकार करे, धर्मान्तरित भाइयों की घरवापसी करे तो सांप्रदायिक हो जाता है। इसी तरह देखेंगे हिन्दू यदि राममंदिर की बातें करे तो सांप्रदायिक और वाही पर मुसलमान यदि बाबरी मस्जिद की बाते करे तो सेकुलर। इसी दोहरी मानसिकता के कम्युनिस्टों ने राम मंदिर के मसलो को हल नहीं होने दिया। एक समय मुसलमानों ने मान लिया था यदि बाबरी ढांचा राम मंदिर तोड़कर बनाया गया है ये साबित हो जाए तो हमलोग अपना दवा छोड़ देंगे। और जब अयोध्या के पुरातात्विक खनन से ये साबित हो गया की राम मंदिर तोड़कर ही बाबरी ढांचा बना था। कम्युनिस्ट बौद्धिकों ने मुसलमानो के मन में हिन्दुओ के खिलाफ द्वेष भरना शुरू कर दिया, डराना शुरू दिया, आक्रांता बाबर के साथ उसे जोड़कर देश के साथ समरस नहीं होने दिया। जिससे राष्टीय एकता को भयंकर आघात लगा है। 

हाल में घटित जेएनयू की घटना कम्युनिस्टों के भारत बिरोध का ही विस्तार मात्र है। आखिर जिस अफजल को भारत के संसद पर हमला करने के जुर्म में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा दिया। उसे भारत के कम्युनिस्टों ने जुडिशियल किलिंग की संज्ञा देकर पाकिस्तान और कश्मीर के पाकिस्तान परस्त अलगाववादियों को भारत के खिलाफ एक ऐसा मुद्दा दे दिया जिसका सच से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है। चूँकि ये मुद्दे कभी नेपथ्य में ना चला जाए इसलिए कम्युनिस्ट हर साल उस आतंकवादी का शहीदी दिवस उस ज्ञान के मंदिर में मनाता है। देश के खिलाफ इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है ?



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