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उस दिन विकासपुरी की गली में डा नारंग का नहीं, सहिष्णुता-दया के सनातनी स्वभाव का हत्या हुआ था। =======================================

‪#JusticeForDrNarang
विकासपुरी की घटना को ध्यान से देखेंगे तो समझ मे आ जाएगा कैसे कुछ मुगल आए और हमें गुलाम बना लिए, कुछ अंग्रेज आए और हमें गुलाम बना लिए।

अभी तक हमलोग यही समझते थे जातिवाद और हिन्दुओं के आपस में बंटे होने के कारन हमलोग गुलाम हुए। लेकिन विकासपुरी कि घटना ने बता दिया है ये थ्योरी कितना खोखला और गलत था। बंटा होना भी एक कारन हो सकता है, लेकिन हमारे पराजय का मूल कारन हमारी भिरुता है, हमारा दया भाव है और सबसे बढ़कर हममें मारक क्षमता का अभाव है। पहले बुद्धिज्म ने हमारे समाज को नपुंसक बनाया फिर गांधीवाद ने उस नपुंसकता को एक्सटेनडेट किया । हम सदैव रक्षात्मक रहे, इसी का फायदा मुग़ल-तुर्क-पठान-मंगोल से लेकर अंग्रेज तक उठाता आया है। ये रक्षात्मकता हमारे कमजोरी का द्योतक है, भले हम इसको कितनो ही भाषिक लफ्फाजी सहिष्णुता-दया आदि से लपेटें।जिसे हम सहिष्नुता और दया समझते है दरअसल वो हमारा कायरता है और कुछ नही।

ये सहिष्णुता-दया का कीड़ा हमलोगों के बचपन में ही पारिवारिक संस्कारों के कारन घुस जाता है। इसका मतलब है हमारे पूर्वजों ने जो हमारे संस्कार के नियन्ता रहे है उन्होंने इस स्थिति का कल्पना तक नहीं किया होगा की भविष्य में ऐसी बदत्तर समय आएगा। जब हमलोग छोटे होते थे तब किसी से लड़ाई होने पर जब घर जाकर माँ से कहते थे तो माँ डंडा लेकर और कूट देती थी .. बोलती थी क्यों लड़ाई किये ..जब तुम्हे पता है सामने वाला झगड़ालू है तो उससे दूर रहा करो ..कभी हिम्मत ही नही होती थी की घर जाकर किसी की शिकायत करूं .. और अगर पिताजी होते थे तो और भी डांटते थे .. ये हमारे ही नही हर हिन्दू के घर की कहानी है ... हमारे संस्कार ऐसे है की हमारे माँ बाप कभी हमारे अंदर हिंसा की भावना को बढ़ावा नही देते हैं। और यही अच्छे संस्कार आज हमलोगों के लिए फ़ांस बन चूका है।

अभी तक हमलोग यही मानकर चल रहे थे, " जब हम किसी के बारे में गलत नहीं सोचते है तो हमारे बारे भी कोई क्यों गलत सोचेगा। जब हम किसीका बुरा नहीं करते है तो कोई हमारा बुरा क्यों करेगा। जब हम किसी को थप्पड़ भी नहीं मारेंगे तो कोई हमारा हत्या क्यों करेगा। आदि आदि ---" हमलोग यही सोचते रहे है, क्योंकि हमारा संस्कार ही ऐसा है। और यही सोच हमें मौत की और धकेल रहा है। ये मत सोचिए आप सज्जन है सहनशील तो आप दुर्जन आततायी इस्लामिक गुंडो का शिकार नही होंगे । डा नारंग भी सज्जन सहिष्नु थे, इसलिए दस बंगला देशी मुसलिम गुंडे घर पर आकर मारकर चला गया। उसे हमारे सहिष्णुता का पता था की डा के घर पर पिस्टल तो क्या एक डंडा भी नही होगा । उसे यदि पता होता कि डा के घर भी असलहा होगा और उसका वो प्रतिकार कर सकता है तो फिर कोई मुस्लीम गुंडा डा नारंग पर हमला करने का दुस्साहस कभी नही कर पाता । 

इसलिए अपनी जान और अपनों का जान बचाना चाहते है तो अपने घर-परिवार-समाज को आत्म-सुरक्षा का गुड सिखाइए। अपने अंदर मारक छमता का विकास किजीए, जिससे कोई आप पर आक्रमण करने का दुस्साहस ही ना कर पाए । शासन- प्राासन-न्यायालय तो बाद की चिजें है, पहले अपने जान की सुरक्षा तो आपको खुद ही करना होगा। इसलिए पहले अपनी सेफ्टी का उपाय करे, आप रहेगें तभी ये धन-दौलत-शोहरत आपके काम आएंगे । आत्मसुरक्षा का मतलब हिंसा या आक्रमण नहीं होता है, ये अपने बचाव के लिए होता है।

आत्म रक्षितो परम धर्मः। धर्म भी आपको आत्मरक्षा का अधिकार देता है और आत्मरक्षा का अधिकार आपको संविधान भी देता है। फिर इस अधिकार का उपयोग भी करेंगे या इसी तरह कभी बामपंथी आतंकवाद का तो कभी मिशनरिज-माओ आतंकवाद तो कभी जिहादी आतंकवाद के आगे प्राणांत करते रहेंगें ? और हाँ आत्मरक्षा केवल जूवान चलाने से नही हो सकता है । सामने वाला डंडे-सरिया या आग्नेयास्त्र से आप पर आक्रमन कर रहा हो तो आप खाली हाथ ना तो खुद को और ना ही अपने परिवार की रक्षा कर सकते है । उदाहरन आपके सामने है, निहत्था डा नारंग ना तो खुद को ही बचा सका और ना ही उनका निहत्था रिश्तेदार ही उन्हे बचा सका । इसलिए बंधुओं आक्रमण के निहतार्थ ना सही, आत्मरक्षा के निहतार्थ शस्त्र धारन किजीए, उसका प्रशिक्षण लिजीए खुद की रक्षा और अपनों की रक्षा किजीए ।

जब आप आत्मिक-मानसिक-शारीरिक सबल हो जाएंगे तो फिर कोई दुष्ट चाहे वो बामपंथी अतिवादी हो या इस्लामिक जिहादी हो आप पर आक्रमण तो क्या आप की ओर टेढ़ी नज़रों से देखने का दुस्साहस नहीं कर पाएंगे। आपने कभी देखा-सुना है, किसी मुस्लिम बहुल इलाके मे जाकर किसी हिन्दू ने किसी मुसलमान का हत्या किया हो। आपने ऐसा कभी नही सुना होगा। लेकिन इसका उल्टा आपने बराबर देखा सुना होगा। क्योंकि इस्लाम की बुनावट ही कुछ इस तरह है की वहां ऐसे निष्कृष्ट काम करने वालों को ख़राब नज़रों से नहीं देखा गया है, उसे ऐसे कुकृत्यों के लिए शर्मसार नहीं होना पड़ता है। जिसके परिणाम मुसलमानों में क्रूरता का भाव बहुत अधिक होता है और वो बातों ही बातों में किसी की हत्या करने पर नहीं हिचकिचाते है। हमे मुसलमानों के इस सोच के खिलाफ तो लड़ना ही है साथ ही साथ अपने बचाव लिए भी इस सोच को ध्यान में रखकर मजबूत घेरा भी बनाना है। हिन्दुओं को अतिशय सदाशयता की निति का परित्याग करना होगा । आत्म रक्षा के लिए हिन्दुओं का सैन्यीकरन आवश्यक है । आज यदि डा नारंग के घर मे अस्त्र-सस्त्र होता तो वे उस बंगलादेशी मुस्लिम गूंडो का सामना कर अपनी जान बचा सकते थे । प्रत्येक हिन्दुओं को इस पर विचार करना पडेगा, डा नारंग के प्रति यही हमारा सच्ची श्रद्धांजलि होगा । जिससे फिर कोई डा नारंग किसी मवाली के हाथों अपने प्राणो का उत्सर्ग नहीं करे।

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