आखिरकार नरेंद्र मोदी के करिशमाई नेतृत्व ने तुफान में फंसे गुजरात भाजपा के किस्ती को किनारे लगा हीं दिया।
"लाए हैं तूफान से किस्ती निकाल के..." कवि प्रदीप के गीत का यह प्रथम पंक्ति गुजरात चुनाव में भाजपा के जीत पर सटीक बैठता है। वोटिंग से एक सप्ताह पहले तक तो बिलकुल स्पष्ट दिखता था भाजपा की किस्ती गुजरात के तूफान में फंस चुकी है। लेकिन नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व और आक्रामक प्रचार शैली ने वोटिंग शुरु होते-होते पाशा को पलट दिया और भाजपा की किस्ती को तूफान से निकालकर किनारे लगा दिया।
वैसे देखा जाए तो वोटिंग से पहले तक पूरे गुजरात चुनाव में कांग्रेस सभी मोर्चे पर हावी था। प्रचार शैली जो कांग्रेस का सबसे कमजोर पक्ष है, वहाँ भी कांग्रेस लगातार दो महिने तक भाजपा पर भारी पड़ा। सामाजिक और जातिय ध्रुवीकरण कांग्रेस ने जिस तरह किया था, भाजपा के पास उसका कोई काट नहीं था।
मुसलमान और ईसाई मजबूती से कांग्रेस के साथ खड़ा था। मंदिर मंदिर जाकर कांग्रेस ने भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व की धार को भोथरा कर दिया था। रोज-रोज भाजपा से राज्य के विकास की एक प्रश्न पूछकर विकास के मोर्चे पर भाजपा को वैकफूट पर खड़ा कर दिया था।
यानी इलेक्शन जीतने के लिए जितने तत्वों की जरूरत होता है, कांग्रेस ने उस सारे तत्वों का बखूबी इस्तेमाल किया। इकोनोमिक स्लो डाउन होने के कारन वैसे हीं मंहगाई और बेरोजगारी बढा हुआ था। चुनाव जीतने के लिए इससे अनुकूल समय और हो हीं नहीं सकता था, फिर भी कांग्रेस गुजरात में चुनाव हार गया। इससे राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के चुनाव जीतने की क्षमता पर एक बार फिर से प्रश्नचिन्ह लग गया। चुनाव परिणाम से एक साफ मैसेज गया अनुकूल परिस्थिति में भी राहुल गांधी कांग्रेस को चुनाव जीता नहीं सकता है।
ऐसा नहीं था कि कांग्रेस ने 2-3 महिने पहले चुनाव की तैयारियां शुरू किया था। कांग्रेस विगत तीन सालों से गुजरात चुनाव की तैयारी शुरू कर चुका था। उसे पता था नरेंद्र मोदी को देश में हराना है तो पहले उसे गुजरात में हराना होगा। मोदी के दो सबल हथियार, हिंदुत्व और विकास को टारगेट बनाकर कांग्रेस ने चुनाव की तैयारी शुरू किया। कांग्रेस को पता था विपरीत परिस्थिति में भी मुसलमान और ईसाई कांग्रेस को छोड़कर भाजपा को वोट नहीं दे सकते। इसलिए कांग्रेस ने केवल हिंदू और हिंदुत्व को अपना टारगेट बनाया। जातीय मुद्दे उभारकर हिंदुओं को विभाजित किया और मंदिर मंदिर जाकर हिंदुत्व की राजनीति में अपना पैठ बनाया। यानी भाजपा के हिंदू और हिंदुत्व की किले को उसने खंड खंड कर दिया था।
सोचिए भाजपा के लिए कितना मुश्किल की घड़ी होगा, एक-एक कर टूटते जा रहे अपने किले को सुदृढ़ कर एक कठिन लड़ाई में वापसी करना। लेकिन भाजपा ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बदौलत लड़ाई में वापसी कर दिखाया। एक तो मोदी ने लगातार मेहनत कर धुआंधार प्रचार से स्थिति को सकारात्मक बनाया, दुसरा भाजपा-संघ-विहिप के जमीनी कार्यकर्ताओं ने बाहरी हवाओं से बिना विचलित हुए अपने अथक मेहनत से भाजपा से दूर होते जा रहे लोगों को वापस लाकर विजय का मार्ग प्रशस्त किया।
#गुजरात_चुनाव 2017
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