उत्तरप्रदेश में सरकार बनने से पहले ही ऐक्शन में आए अधिकारी, भाजपा के चुनावी घोषणापत्र पर काम शुरू।
भाजपा ने यूपी में अभी शासन नहीं संभाला है, लेकिन भाजपा की यूपी सरकार के लिए काम शुरू हो गया है। राज्य के टॉप ब्यूरोक्रैट्स और पुलिस अधिकारियों को अहसास हो गया है कि 2019 के मध्य तक का समय उनके लिए पहली बड़ी डेडलाइन है, जब अगले आम चुनाव होंगे। लिहाजा वे बड़ी योजनाएं तैयार करने, पहले की योजनाओं की समीक्षा करने और प्रदेश में आ रहे केंद्र सरकार के अधिकारियों के साथ मीटिंग करने में व्यस्त हो गए हैं। हालांकि इसके अलावा उनके सामने एक बड़ा काम एसपी और बीएसपी के 15 सालों के शासन में सीखे गए प्रशासन के ढर्रे को भूलने का होगा।
पीएमओ के टॉप ऑफिशल नृपेंद्र मिश्रा और कैबिनेट सेक्रटरी पी के सिन्हा, दोनों ही यूपी काडर से हैं और इसका मतलब यह है कि केंद्रीय स्तर पर प्रदेश के प्रशासन की 'गहरी समझ' वाले दो टॉप ऑफिसर हैं। यूपी के वरिष्ठ अधिकारी बीजेपी के प्रदेश के चुनावी घोषणा पत्र का अध्ययन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अंदाजा है कि कामकाज संभालने वाला प्रशासन वोटरों से किए गए इस 30 पेज के वादे से ही अपनी प्राथमिकताएं तय करेगा।
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, 'हमारे पास यूपी की तस्वीर बदलने के लिए पांच साल का वक्त नहीं है। हमारे पास केवल दो साल हैं, जब यूपी में हमारे प्रदर्शन का इम्तिहान 2019 के लोकसभा चुनाव में होगा। लिहाजा यूपी का तेजी से विकास करने के मॉडल पर काम होगा।' उन्होंने कहा, 'कानून व्यवस्था, 24 घंटे पेयजल आपूर्ति, बूचड़खानों को बंद कराना, कृषि कर्ज माफी और गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान तो अभी सबसे जरूरी काम हैं। राज्य के अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी दी जा चुकी है।
यूपी ब्यूरोक्रैट्स बूचड़खानों को बंद करने जैसे कुछ चुनावी वादों को अमल में लाने के प्रभावों का भी अध्ययन कर रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि ऐसे कदमों का रोजगार पर असर पड़ सकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें 'इस वादे के महत्व' की जानकारी है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी और उसकी एडवाइजर क्रिसिल की एक टीम 'सभी लोगों को हर वक्त बिजली' के मोदी सरकार के प्रॉजेक्ट में यूपी के एनरोलमेंट पर लखनऊ में बैठकें कर रही है। यूपी एकमात्र राज्य है, जिसने इस प्रॉजेक्ट के लिए अब तक एनरोलमेंट नहीं कराया है।
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