#मेरा_देश_बदल_रहा_है : मेरा देश ही नहीं, अब संघ भी बदल रहा है और भाजपा भी बदल रहा है। ********************************************************
अब ना तो पहले वाला संघ
रहा और ना ही अब पहले वाला भाजपा ही रहा। दोनों संगठन अब व्यवहारिक धरातल पर
बिलकुल बदल चूका है। इस बदलाव का अहसास हमें और आपको भले ही सोशल मिडिया पर नहीं
दिख रहा हो, लेकिन संगठन में कार्य करने वाले
पर इस बदलाव का सबसे ज्यादा असर हुआ है और वो इसे भुगत भी रहा है।
दधीचि
की तरह अपना हड्डी तक संगठन के लिए लगाने वाले भी हतप्रभ है, ये क्या हो रहा है ?
कौन ऐसा कर रहा है ? क्यों कर रहा है ? वैचारिक अनुशासन के नाम पर मनमानी
हर जगह थोपा जा रहा है। प्रखंड स्तर से लेकर राज्य
स्तर तक विचार-विनिमय-सामंजस्य की परंपरा का लोप हो रहा है। प्रखंड अध्यक्ष कौन
बनेगा,
इसका भी निर्णय पर्यवेक्षक नुमा प्राणी से अपने स्वहित को ध्यान
में रखकर सर्वसम्मति के चासनी में डुबोकर किया जाता है। जब प्रखंड की ऐसी स्थिति
है,
तो फिर जिला, प्रदेश और देश के बारे में सहज
अंदाजा लगा सकते है। अंगूठा लगाओ नहीं तो भेड़िया आ जाएगा, ये
भय दिखाकर लोमड़ी लोग अपना उल्लू सीधा कर रहा है। आपने यदि अपनी एकनिष्ठ सेवा, विचारधारा, लोकतंत्र
आदि की राग अलापने की कोशिश किया तो आप आज ही से संगठन से बाहर।
ये कोई फंतासी नहीं
रियलिस्टिक है। आप किसी भी प्रखंड,
जिला या प्रदेश के
संगठन के 20 वर्षों के पुराने स्मृति को आज के
धरातल पर देखने की कोशिश करेंगे, तब आपको वास्तविकता से परिचय
होगा। तब आपको दिखाई देगा कैसे कुछ गणेश परिक्रमा वाले, कुछ नव धनाढ्यों ने,
किस तरह पार्टी के
संगठन को हाईजैक कर लिया है। कैसे कार्यकर्त्ता बेचारा बनकर रह गया है, जिसने संगठन के लिए अपने घर-परिवार की चिंता नहीं किया उसी के लिए
संगठन बेगाना बन गया। जब विचार प्रक्रिया में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो उसकी राय
लिया ही ना जाए केवल उसे आदेश को पालन करने वाला ही समझा जाए। तो ऐसे लोग
कार्यकर्ता बनकर नहीं आदेशपाल बनकर रह जाता है।
धीरे-धीरे
विचार और पद्धति के बीच दुरी बढ़ता जा रहा है। कार्यकर्त्ता का कार्यक्रम के साथ
एकरूपता का जो भाव मिलता था वो धीरे-धीरे गायब होते जा रहा है। कार्यक्रम
कार्यकर्त्ता को जोड़ने का उसे बनाए रखने का उपक्रम होता था, वो अब धीरे-धीरे गायब होते जा रहा है। अब कार्यक्रम भी थैलीशाहों
के गिरफ्त में जा चूका है। पहले कोई कार्यक्रम होता था तो उसका मुख्य उद्देश्य
होता था कार्यकर्ताओं को जोड़ना और अपने विचार को फैलाव देना। इसके लिए सभी
कार्यकर्ताओं से उसके आसपास के घरों से चंदा इकठ्ठा करना, घर-घर से खाने के पैकेट को इकठ्ठा करना, अपने-अपने स्तर पर पोस्टर-बैनर-तोरणद्वार लगाना आदि-आदि। यानी हर
स्तर पर कार्यकर्ताओं की सामूहिक हिस्सेदारी सभी जगहों पर होता था और दिखता था। आज
क्या होता है? कोई भी कार्यक्रम हो संघ या भाजपा
का किसी भी थैलीशाह को पकड़ लिया जाता है और कार्यक्रम करा लिया जाता है। फिर वो
थैलीशाह आगे उसकी कीमत वसूलता है, कार्यकर्त्ता केवल भीड़ का हिस्सा
बनकर रह जाता है। नेता लोग भी यही चाहते है कार्यकर्त्ता संगठन के प्रति नहीं, बल्कि उसके प्रति बफादार हों। और आज हो भी यही रहा है जो संगठन और
बिचार के प्रति बफादार है उसे कोई पूछ नहीं रहा है, जो
नेता के प्रति बफादार है उसे संगठन में भी बड़े-बड़े ओहदे मिलते है और उसे ही
एमएलए-एमपी-मंत्री भी बनाया जाता है।
पहले भाजपा या संघ की ऐसी स्थिति नहीं था, आज तो संघ भी बदल रहा है तो भाजपा उस बदलाव के पथ पर दौड़ लगा रहा है। हमारे जैसे लोग इस बदलाव को विस्फारित नेत्रों से केवल देखने को अभिशप्त है।
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