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एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन से उसकी राजनितिक सहभागिता के लिए प्रश्न पूछना बेमानी ही नहीं षड्यंत्र का सूचक भी है। ******************************************************

संघ से ये पूछना की, आजादी की लड़ाई में संघ की क्या भूमिका था या संघ आजादी की लड़ाई में कांग्रेस पार्टी की तरह प्रत्यक्ष रूप से शामिल क्यों नहीं था ? यह ठीक वैसा ही प्रश्न है जैसे किसी इंजिनियर से पूछा जाए, आपने अभी तक कितने लोगो का इलाज किया है या किसी डाक्टर से पूछा जाए की आपने कितने सड़क-पुल आदि का निर्माण किया है ?

लगभग ऐसे ही बेतुके सवालों से संघ के बिरोधी संघ को घेरते आए है, जिसका तथ्यात्मक कोई औचित्य नहीं है। संघ के बिरोधी को भी मालूम है संघ कोई राजनितिक संघठन नहीं था, जो राजनितिक आंदोलन में भाग लेता। संघ एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन था, जिसका मुख्य उद्द्येश्य हिन्दुओं का एकीकरण और हिन्दुओं का सशक्तिकरण करना था। इसलिए संघ से ये प्रश्न करना आपने स्वतंत्रता काल में राजनितिक गतिविधियों में भाग क्यों नहीं लिया ? एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न, षड्यंत्रकारी प्रश्न के आलावा और कुछ भी नहीं है।

आज यदि कांग्रेस या कम्युनिष्ट पार्टी से ये प्रश्न किया जाए की, आपने कितने बनवासी कल्याण आश्रम बना रखें है या आदिवासी बहुल गांवों में कितने एकल विद्यालय चला रखें है या हिन्दू धर्म/संस्कृति की उत्थान के लिए अभी तक कितने आंदोलन चला रखें है आदि सवाल का जवाब भी संघ से पूछे जाने वाले जवाब की तरह ही होगा। क्योंकि कांग्रेस-कम्युनिष्ट एक राजनितिक संगठन है कोई सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन नहीं, इसलिए इन दोनों पार्टियों से इस तरह का प्रश्न पूछना ही बेतुका होगा।

अब आइए देखते हैं संघ की स्थापना किन परिस्थितियों में किन उद्देश्यों के लिए किया गया था : आरएसएस के स्थापना का मुख्य उद्द्येश्य हिन्दू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाना है। संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार ने देखा, की हिन्दू समाज खण्ड-खण्ड बंटा हुआ है। जब भी इस समाज पर दूसरे धर्मों के लोगों ने आक्रमण किया, हिन्दू समाज के दूसरे अंगों ने उसका साथ नहीं दिया। परिणाम यह हुआ आक्रमणकारी का हौसला बढ़ता गया और खंडित हिन्दू पिटता गया। अपमान सहना ही हिन्दुओं ने अपना भाग्य समझ लिया था, प्रतिकार करना तो लगभग भूल चूका था। पूरा समाज आत्मविश्वास-शून्य, शक्ति-शून्य हो गया था। इस विषम परिस्थिति में हिन्दू समाज को संगठित करने, देश के प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रभाव का निर्माण हो, इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्‍थापना 27 सितम्बर 1925 को विजय दशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्‍थान पर डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने किया था। संघ के 5 स्‍वयंसेवकों के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओ में बदल गई और ये 5 स्‍वयंसेवक आज करोड़ों स्‍वयंसेवकों के रूप में हमारे सामने है।


इसलिए एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन से उसकी राजनितिक सहभागिता के लिए प्रश्न पूछना बेमानी ही नहीं षड्यंत्र का सूचक भी है।

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