शंखनी नारी
कविवर पं सीताराम झा द्वारा "शंखनी नारी" का वर्णन :-
केश छत्ता जकाँ, माथ हत्ता जकाँ।
आँखि खत्ता जकाँ, दाँत फारे बुझू।
बोल रोडा जकाँ, चालि घोडा जकाँ।
पेट मोडा जकाँ, वा बखारे बुझू।।
छूति ने लाजसँ, संग कै पाजसँ
नित्य सत्काजसँ, तँ उधारे बुझू।।
राक्षसी ढंग टा सँ, करय तंग टा।
शंखिनी संग टा, तँ संहारे बुझू।।
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