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बरबाद होता सरकारी शिक्षा संसथान, आबाद होता प्राइवेट शिक्षा संसथान ! ***********************************************************

यह देखकर बहुत दुःख होता है जब अख़बारों का पन्ना पलटता हूँ तो अमेटी जैसे यूनिवर्सिटी का विज्ञापन रोज दिखाई देता है। किसी एजुकेशन वेबसाईट पर जाता हूँ, तो वहां भी अमेटी जैसे यूनिवर्सिटी दिखाई पड़ता है। आखिर इतना विज्ञापन में खर्चा क्यों ? यदि वहां का शैक्षणिक स्तर अच्छा होगा तो वहां के स्टूडेंट ही बाहर निकलकर उसके ब्रांड एम्बेस्डर होंगे, उसके प्रचार अपने आप हो जाएगा।

अमेटी तो एक उदाहरण मात्र है सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटी आज इसी पदचिन्हों पर चल रहा है। इतना विज्ञापन तो लक्स और लाइफबॉय साबुन भी नहीं दे रहा है जितना ये बड़े - बड़े दैत्याकार प्राईवेट यूनिवर्सिटी दे रहा है। इसके विज्ञापन का बोझ तो अंत में छात्रों को ही उठाना पड़ता है। ये यूनिवर्सिटियां कमाई का एक मोटा हिस्सा तो विज्ञापन पर खर्चा कर दे रहा है। परिणाम यह हो रहा है उसकी भरपाई ये टीचरों/प्रोफेसरों की तन्खाह में कटौती कर करते है। जिसका दुष्परिणाम अंत में छात्रों को भुगतना पर रहा है। किसी भी प्राइवेट यूनिवर्सिटी में अच्छे/योग्य शिक्षकों का नितांत ही आभाव है। ऐसा रहा तो एक दिन ये केवल डिग्री देने वाले संस्थान होकर रह जाएंगे।

पहले यूनिवर्सिटी सरकारी होता था तो प्राइवेट कॉलेज पर उनका कुछ मॉनिटरिंग भी होता था और आज जब यूनिवर्सिटी को भी प्राइवेट यानी लाला की दुकान बना दिया गया फिर गुणवत्ता की किसे चिंता है माल कमाना ही अंतिम ध्येय बन गया है। 

ना तो समाज को इसकी चिंता है, ना राजनीतिक दलों को इसकी चिंता है फिर तो धनपशुओं के लिए शिक्षा का व्यवसाय मुनाफाखोरी का एक सुनहरा अवसर में तब्दील हो गया है। जमकर लूट मचा हुआ है, कोई ख़ुशी से तो कोई दुखी से इस लूट का टूल्स बन गया है। सामान्य जन तो समझ भी नहीं पा रहा है, ये हो क्या रहा है? सामान्य जनों के पास नातो इतना पैसा हैं की वे इन दैत्याकार यूनिवर्सिटी में अपने बच्चों को पढ़ा सके। सरकारी संसथान वैसे भी भारत में सिकुरता जा रहा है। सरकारी संसथान बरबाद नहीं होंगे, तो फिर प्राइवेट संसथान आबाद कैसे होंगे।


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