केवल धार्मिक होने से हिंदुत्व की रक्षा नहीं हो पाएगा।
धार्मिक तो हम हजार वर्ष पहले भी थे, लेकिन फिर भी हम पराजित हुए। ना हम अपने इष्ट का मंदिर बचा पाए, ना गुरुकुल और ना हीं अपना ग्रंथ। अपने सगे संबंधी बहन बेटी तक को नहीं बचा पाए।
धार्मिकता तो था, परंपरा तो था, लेकिन देश काल परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने के क्षमता का घोर अभाव था। कूटनीति का अभाव था। सज्जन और दुर्जन में व्यवहार के भेद के अंतर का अभाव था।
इसलिए इतिहास से सीख लेकर भविष्य के लिए नये पथ का निर्माण करना चाहिए। सहयोग कीजिए व्यवधान उत्पन्न मत किजिए। 500 वर्ष के बाद रामलला का भव्य मंदिर बन रहा है। राजनीति और कूटनीति के समन्वय के कारण हीं यह मंदिर हमें प्राप्त हुआ है।
इसलिए इस राष्ट्र मंदिर में अपने मठ की तरह के अनुशासन का हठ नहीं करें। अपनी परंपरा का पालन आप करिए और रामजन्म भूमि पर बने मंदिर में ट्रस्ट के विचारों के अनुरूप कार्य होने दीजिए। इसी में हिंदू समाज का भला है।
जय जय सियाराम, जय जय अयोध्या धाम।
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