Header Ads

Breaking News
recent

झा उपाधि (सरनेम) के उत्पति का एक विवेचना

                    झा उपाधि 

केवल मैथिल ब्राह्मणों में झा उपाधि है। इसका अर्थ शब्द कल्पद्रुम तथा वाचस्तत्यम् में झष (मत्स्य)-भोजी किया गया है। बंगाल, असम के ब्राह्मण भी मत्स्य खाते हैं। यह व्यक्तिगत रुचि पर निर्भर है, किन्तु मछली खाना ऐसा महान् गुण नहीं है कि इसके आधार पर ब्राह्मण उपाधि हो। इस तर्क के अनुसार मिथिला, बंगाल के सभी ब्राह्मणों को झा कहना चाहिए।

'झ' नवम व्यञ्जन है, अतः यह ९ अंक (आर्यभटीय पद्धति) तथा नव-दुर्गा का वाचक है। नव-दुर्गा उपासक या नवार्ण मन्त्र की साधना करने वाले झा हैं। 

अन्य प्रकार से यह ओझा का संक्षिप्त रूप है। शक्ति या ओज साधना करने वाले ओझा हैं। इसके लिए शरीर के भीतर ५२ शक्तिपीठ रूपी ५२ अक्षरों का न्यास किया जाता है। ५२ अक्षर हैं-क से ह तक ३३ देवों के चिह्न, षोडशी पुरुष रूप १६ स्वर मिलाने से ४९ मरुत् रूप। यह चिह्न रूप में देव-नगर होने से देवनागरी लिपि है। यह लिपि विश्व के वाक् रूप को जन्म देने के कारण मातृका है। वाक् या अर्थ विश्व क्षेत्र है, उसका ज्ञाता क्षेत्रज्ञ है (गीता का अध्याय १३)। क्षेत्रज्ञ के लिए क्ष, त्र, ज्ञ जोड़ने पर ५२ अक्षरों का सिद्ध-क्रम है। अतः तान्त्रिक को ५२ गांव का ओझा कहते हैं। तान्त्रिक क्रिया को लोकभाषा में ओझाई कहते हैं। इसका मिथिला में अधिक प्रचलन होने से वहां संक्षिप्त रूप झा हो गया।
एक अन्य मत है कि उपाध्याय (शिक्षक) को प्रकृत में उपज्झा कहते थे, जिससे ओझा हुआ है। किन्तु उपज्झा कहीं प्रचलित नहीं है, अतः यह मत ठीक नहीं लगता।
(विद्वान लेखक अरुण कुमार उपाध्याय का अभिमत)
------------------------------------------------------------
अरुण कुमार उपाध्याय जी के लेख पर अखिलेश्वर मिश्र का प्रतिक्रिया :-  आपसे कुछ असहमति है , अतः विनम्रता पूर्वक निवेदन है । वस्तुत: *उपाध्याय* पद का ही अपभ्रंश प्राकृत मे उज्झाय होता है, जिसका प्रयोग जैन मतावलंबी अपने नमस्कार मन्त्र के एक भाग के रूप मे आज भी करते हैं, यथा .. नमो उज्झायाणां... इसका संस्कृतानुवाद *नमो उपाध्यायाणाम् इति* है ।
सरयूपारीण क्षेत्र के ही शिक्षक ( उपाध्याय ) ब्राह्मणों का प्रवजन जब पूर्वी भारत मे हुआ तो तत्तद् क्षेत्र विशेष के अनुसार ये *उपाध्याय* ब्राह्मण, तत्तद् क्षेत्रोपाधि विशिष्ट उपाध्याय ब्राह्मण हुए हैं - - गांगेय क्षेत्र के उपाध्याय ब्राह्मण *गंगोपाध्याय अभी के गांगुली*  , चट्टग्राम (चटगांव) के उपाध्याय ब्राह्मण *चट्टोपाध्याय वर्तमान के चटर्जी* , वन्दनीय (सर्वश्रेष्ठ) उपाध्याय *बन्द्योपाध्याय वर्तमान प्रचलित बनर्जी* । यही *उपाध्याय* उपाधिधारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश तथा बिहार मे उपाध्याय/ ओझा के रूप मे हैं; इसी उपाध्याय का उज्झाय से ओझा तथा मिथिला राज्य मे ओझा से *झा* उपाधिधारी ब्राह्मण हुए हैं।

No comments:

Powered by Blogger.