फ़ासिज़्म बारास्ता लीग (३)
हम अंग्रेजों के जिस इतिहास को जानते हैं वह हाथी के दिखाने वाले दांत की तरह है जो असलियत को छिपाने के लिए तैयार किया गया है। मुस्लिम समाज प्रबुद्ध वर्ग कुरान से संचालित नहीं होता परंतु उसकी जहन में अंग्रेजों ने जो इतिहास भरा वह हिंदुओं के प्रति उसके मन को आज तक आशंकित रखता है। उन्होंने यह काम किस तरह किया इस पर कभी खुल कर विचार नहीं किया गया, क्योंकि इसे कहीं दर्ज नहीं किया गया केवल उनके मन में तटस्थता और प्रामाणिकता का प्रदर्शन करते हुए उतारा गया।
अंग्रेजों ने कभी यह जाहिर नहीं किया कि वे मुसलमानों को अपना बनाना चाहते हैं। वे उन्हें केवल यह समझाते रहे कि जिस तरीके से उन्होंने भारत पर अधिकार किया था और इसे अपनी संपत्ति समझते थे उसी तरीके से अंग्रेजों ने इसे उनसे छीना है। यह देश हमेशा से विजेताओं के अधिकार में रहा है। आज के विजेता वह हैं इसलिए इस पर उनका वैध अधिकार है। इस पर मुसलमानों को इसी तरह की आपत्ति करने का अधिकार नहीं। आज की स्थिति में उनको अंग्रेजों का वफादार बन कर रहना चाहिए। उनसे उन्हें कोई भी खतरा नहीं है । वे उनके साथ न्याय करना चाहते हैं, परंतु हिंदू अधिक चालाक हैं, अधिक शिक्षित हैं, और इसलिए नौकरी- चाकरी व्यापार सभी में अवसर का लाभ ले उठा ले जाते हैं और मुसलमानों को अपनी जायज हक से भी वंचित रहना पड़ता है।
सरकार मुसलमानों की हालत में सुधार करने के लिए प्रयत्नशील है परंतु मुसलमानों के झगड़ालू चरित्र, योग्यता के अभाव तथा आलसी स्वभाव के कारण वह चाह कर भी उनके साथ न्याय नहीं कर पाती।
ये बातें मुसलमानों पर लिखी गई हंटर की किताब में बहुत साफ दर्ज की गई। यद्यपि सैय्यद अहमद ने हंटर की कठोर शब्दों में (हंटर के हंटर) आलोचना की थी, परंतु उसकी ठोस बचाई उनके भीतर उतर गई।
हंटर एक ओर मुसलमान रईसों की आय और शान के सारे साधनों को छीनकर उन्हें इतना दयनीय बनाने के लिए कंपनी को जिम्मेदार ठहराता है साथ ही इस कदम को उचित बताता है, मदरसों की शिक्षा को जाहिल, कट्टर और अहंकारी जमात तैयार करने वाला सिद्ध करते हैं जिसके कारण उन्हें कंपनी किसी काम पर लगा नहीं सकती। दूसरे कंपनी ने मुस्लिम शासकों को हराकर अपना साम्राज्य स्थापित किया था इसलिए उनमें बदले की भावना है अतः उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
इन कारणों से मुसलमान महारानी के प्रति वफादार नहीं रह सकते। इसलिए अब महारानी की न्यायप्रिय सरकार को उनकी दशा सुधारने की कोशिश करनी चाहिए और मुसलमानों को भी सरकार का विश्वास पात्र बनने और अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करके अपने को हिंदुओं से अधिक योग्य सिद्ध करना चाहिए। सरकार इस मामले में उनकी सहायता कर सकती है जिससे सारा लाभ हिंदुओं को ही न मिलता रहे।
यदि हम इसके बाद सैयद अहमद के विचारों देखो और कार्यों को देखें और अपनी तरक्की करने के लिए धीरे-धीरे पूरी तरह उनके ऊपर निर्भर होते चले जाने की कहानी को देखें तो वह हंटर के सुझावों पर आंख मूंदकर अमल करने की कहानी दिखाई देगा।
हिंदू आगे बढ़ गए हैं और धीरे धीरे अधिक से अधिक अधिकार की मांग करते जा रहे हैं एक दिन ऐसा आ सकता है की वह हमसे पूरी स्वतंत्रता की मांग करें। अंग्रेज भारत पर शासन भारत की जनता के भलाई के लिए कर रहे हैं और जिस दिन यह विश्वास हो जाएगा भारतवासी शासन संभाल सकते हैं तो हम उन्हें सत्ता सौंपी सकते हैं।
पर अंग्रेजों का ऐसा करना मुसलमानों के लिए आत्महत्या करने जैसा होगा क्योंकि हम किसी व्यक्ति को राजा बना नहीं सकते जनता के हाथ में ही सकता सोचती होगी प्रजातंत्र की स्थापना होगी हिंदुओं की संख्या चार गुनी है शासन उनके हाथ में होगा और भी मध्यकाल में मुसलमानों ने उनके साथ जो किया है वही व्यवहार मुसलमानों के साथ में करेंगे इसलिए मुसलमानों का इतिहास में है की ब्रिटिश था अनंत काल तक बनी रहे क्योंकि हम मुसलमानों को खतरे में डालकर हिंदुओं के हाथ में सत्ता नहीं सौंप सकते।
मुसलमानों ने ६00 साल तक हिंदुओं पर राज किया है उन्हें हिंदुओं का ताबेदार बनाकर नहीं छोड़ा जा सकता। कांग्रेस कहने के लिए राष्ट्रीय पार्टी है परंतु दूसरे लोगों के नाम मात्र दिखावे के लिए यह हिंदुओं की पार्टी है और सत्ता इसी के हाथ में आएगी।
अंग्रेजों ने मुसलमानों से सत्ता हासिल की थी उचित दिया होता कि वे उन्हें सत्ता सौंप कर चले जाते परंतु ऐसा करना संभव नहीं है।
एक ही देश में दो राजा नहीं हो सकते। या तो हिंदू मुसलमानों को दबाकर रखें या हिंदुओं को मुसलमान दबा कर रखे हैं तो ही शासन चल सकता है। मुसलमान हिंदुओं से दबकर रह नहीं सकते क्योंकि उन्होंने उनके ऊपर इतने लंबे समय तक शासन किया है। शासन भले चला गया हो परंतु और पुरानी आन-बान तो जाएगी नहीं। इसलिए यदि हिंदुओं ने मुसलमानों को किसी तरह दबाने की कोशिश की तो खून खराबा होगा, शांति नहीं रह सकती।
हिंदुओं को लंबे समय से गुलामी में रहने की आदत है यदि मुसलमान अपने इन पर अड़े रहें तो उन्हें झुका-दबा कर रख सकते हैं। लोकतंत्र में ऐसा संभव नहीं होगा। दूसरा कोई तरीका दिखाई नहीं देता। इसलिए मुसलमानों को प्रयास करना चाहिए कि वे अंग्रेजी शासन के सुरक्षित रहें है और अंग्रेजों का विश्वास प्राप्त करके हिंदुओं से भी अधिक स्थिति में आने का प्रयत्न करें।
हिंदुओं से मेल-जोल बढ़ाने का खतरा और भी बड़ा है। दूसरे मजहब एक एक का धर्मांतरण करते हैैं, परंतु हिंदू प्रेम दिखाते हुए अपना बनाते चले जाते हैं और पूरी की पूरी कौम उनके भीतर समा जाती है। उसकी अलग पहचान ही मिट जाती है। हूणों, शकों और दूसरे आक्रमणकारियों के साथ ऐसा ही हुआ इसलिए यदि अपने मजहब और संस्कृति को बचा कर रखना है तो हिंदुओं से दूरी बना कर रखना होगा।
अंग्रेजों ने कभी खुल कर यह जाहिर नहीं किया कि उन्हें मुसलमानों की सहायता की जरूरत है। उनके मन में असुरक्षा की भावना पैदा की और उसे हिंदू फोबिया का रूप दिया और केवल यह जताते रहे कि उन्हें हिंदुओं की नीयत और प्रशासनिक योग्यता पर संदेह है, मुसलमानों पर पूरा भरोसा है। हिंदू खुराफाती है। शासन का अनुभव नहीं, इसके लिए आंदोलन करते हैं, जब कि मुसलमानों को प्रशासन का अनुभव है। वे इसकी जिम्मेदारी समझते हैं और इसलिए शांति पूर्ण तरीके से, सरकार से सहयोग करते हैं। कानून का पालन करते हैं। इसलिए उनके प्रति सरकार को विशेष प्रेम है और वह कुछ भी ऐसा न कर सकती है न होने देना चाहती है जिससे मुसलमानों का कोई नुक़सान हो। इतना ही नहीं वे बदली परिस्थितियों में जिस भी चीज से अपना भला समझते हैं, उसे उनको दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
यही असुरक्षा की भावना उन्होंने नवाबों, राजाओं और जागीरदारों के मन भर रखी थी। स्वतंत्रता मिली भी तो उससे लोकतंत्र की ही स्थापना नहीं होगी बल्कि साम्यवाद की स्थापना होगी। जिनके पास अधिक संपत्ति है वह उनसे छीन ली जाएगी। परंतु राजा और नवाब और जागीरदार ब्रिटिश प्रशासन में होने वाली गतिविधियों में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं रख सकते थे। वे केवल उन संगठनों का वित्तपोषण कर सकते थे जो स्वतंत्रता आंदोलन के विरोध में छोटे बड़े जमीदारों द्वारा तैयार किए गए थे और जिन्हें धार्मिक रंगत दे दी गई थी। मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद हिंदू महासभा का जन्म इन्हीं परिस्थितियों में हुआ था।
Bhagwan Singh जी के फेसबुक वाल से साभार
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