जिनके लिए पैसा हीं खुदा है, वो डाक्टर नहीं डकैत है।
बात 10साल पुरानी है, बाइक से ऑफिस जा रहा था बाइक फिसल गया घुटना टूट गया। सरकारी हास्पिटल तो भ्रष्ट और निकम्मे शासकों के भेंट चढ चुका है, फिर प्राइवेट में जाने के सिवा रास्ता क्या था। बहुत खोजबीन के बाद रोहिणी में एक डॉक्टर के पास गया, सोचा पॉस इलाका है तो हमारे नजफगढ़ से तो अच्छा डाक्टर होगा।
डाक्टर साहब मदारी की तरह बहुत सारे नकली घुटनों के सैम्पल लेकर बैठे थे।उद्देश्य एक हीं किसतरह पैसेंट को मानसिक रूप से कमजोर कर अपनी उंगली पर नचाया जाय या कहें माल निचोड़ा जाय।
डाक्टर साहब ने सेम्पल पर उंगली फिराते हुए कहा आपके दोनों घुटनों को ज्वाइंट करने के लिए जो बेल्ट होता है उसमें से तीन चार बेल्ट टूट गया है। इसको ऑपरेशन कर हमें स्टीच करना होगा। स्टीच नहीं करने पर पैर हिलता रहेगा। ऑपरेशन यहाँ नहीं मेरे हॉस्पिटल अग्रसेन में होगा। एक एक महिने पर चेक कराता रहना पड़ेगा। यानी कुल 6 महिने का वो प्रोजेक्ट बना दिया। दिल्ली जैसे शहर में एक सिमित आय वाला इंसान 6 महिना घर में बैठना उस पर से ठीक होने की गारंटी नहीं, शरीर पसीना पसीना हो गया।
खैर घर आया, पड़ोसियों के सलाह पर सारी रिपोर्ट लेकर नगलोई में दूसरे आर्थोपेडिक से दिखलाया।। उन्होंने कहा एक महीने के लिए बेडरेस्ट लिख दिया, कुछ कैल्शियम की गोली और दर्द की गोली। मैं आश्चर्यमिश्रित होकर पूछा और कुछ नहीं करना है? उन्होंने कहा प्लास्टर कर दूं? मैने कहा प्लास्टर बिना काम चल जाए तो रहने दिजिए, इतना भारी शरीर को उठाकर कौन पेशाब-पैखाना कराता रहेगा। बस एक हीं हिदायत उन्होंने दिया, "फिर से घुटनों में चोट नहीं लगना चाहिए"।
फिर मैंने रोहिणी वाले डॉक्टर द्वारा बताए गए आपबीती बताया। वे सर पकड़ लिये, उन्होंने कहा ऑपरेशन क्यों करना? ये सब गॉडगिफ्टेड होता है अपने आप ठीक हो जाएगा।
ईश्वर की दया से नागलोई वाले डाक्टर के बताए अनुसार बिना किसी ऑपरेशन का पैर पूरी तरह ठीक हो गया। आज भी सोचकर डर जाता हूँ," उस रोहिणी वाले डकैत के चंगुल से आजाद नहीं हुआ होता तो क्या गत मेरा हो रहा होता?"
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