आवश्यकता है कोरोना की गाइडलाइंस को मानवीय बनाने का।
कोरोना की जो गाइडलाइंस है ये बहुत हद तक अमानवीय है, अब इसमें संसोधन की आवश्यकता है।
कोरोना की सेकंड वेव जब पूरी उफान पर था तब हमारे जान पहचान के 34-35 वर्ष के एक नौजवान कोरोना ने लील लिया। प्राइवेट कंपनी में काम करता था। एक कमरे के किराये के मकान में पत्नी और 4 साल की छोटी बेटी के साथ रहता था। गठीला और स्वस्थ शरीर था। लेकिन यथाशक्ति इलाज के बाद भी कोरोना से जंग जीत ना सका।
अब आइये इसके तकनीकी पक्ष पर। गरीब आदमी एक छोटे से कमरे में तीन लोग रहता था। साथ खाना पीना सोना उठना बैठना होता था लेकिन पत्नी और बेटी का रिपोर्ट निगेटिव आया। इन दोनों को साथ रहने के बावजूद कोरोना तो छोड़िये साधारण सर्दी बुखार तक नहीं हुआ।
तो फिर जो ये जटिल और डरावना गाइडलाइंस बना रखा है जिस कारण कोरोना से मृत व्यक्ति को चार कंधा तक नसीब नहीं हो रहा है। बिमारी से मौत केवल व्यक्ति का भले हीं होता हो लेकिन अछूतपन का दंश पूरे परिवार को झेलना पड़ता है जो मृत्यु से कम कष्टदायी नहीं है।
इसलिए कोरोना की संपूर्ण गाइडलाइंस लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, मेडिसिन आदि पर पुनरीक्षण का आवश्यकता है, मानवीयता की पुट देने की आवश्यकता है।
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