आप जानते हैंं, मुसलमानों के खिलाफ ये नफरत क्योंं फैल रही है?
हाँ ये सच है देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैल रही है। लेकिन आप जानते हैंं ये नफरत क्योंं फैल रही है? तो पढिए विशाल महेश्वरी के पैनी कलम से ये तीक्ष्ण विश्लेषण।
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दो दिन पहले एक फल विक्रेता ने बताया कि एक महिला ने फल खरीदने से पहले उसका नाम पूछा। चूँकि युवक के नाम से उसका धर्म स्प्ष्ट नही था तो महिला के पूछने पर उसने जवाब में बताया कि मैं मुसलमान हूँ। जिसके बाद महिला ने फल नही खरीदे।
उस गरीब युवक की बात को सुन उसे समझाया कि कुछेक दिन में सब ठीक हो जाएगा। तब तक ऐसे लोगों से बचकर अपना काम करते रहो। लेकिन संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते उसके परिवार की चिंता जरूरी हुई क्योंकि लॉकडाउन की जब शुरुआत हुई तब वो पहला शख्स था जिसके हाथों में मैंने आटे का कट्टा, सब्जी, चावल सहित घरेलू राशन लाकर पकड़ाया था। इन हालातों में उसे कोई दिक्कत न हो, इसके लिए हर सम्भव मदद का आश्वासन दिया।
देश के अलग अलग हिस्सों में इस तरह की घटनाएं हुई हैं। सब्जी, फल बेचने वालों से उनका आधार कार्ड माँगा जा रहा है। उनसे उनका धर्म पूछा गया है। लोग बता रहे हैं कि नफरत फैल रही है, हाँ वाकई नफरत फैल रही है। लेकिन न यह नफरत आज पैदा न हुई है, न ही कुछेक दिन में सामने आई है।
यह नफरत विभाजन की उस रेखा के बाद ही तय हो गयी थी। इसके बाद इसे आसानी से खत्म किया जा सकता था लेकिन इस नफरत को बाकायदा पाला, पोषा गया है। एक समुदाय के लिए मजहबी कानून, बाकियों के लिए संबिधान के हिसाब से चलना सिखाया गया।
धर्मनिरपेक्षता की अंधी दौड़ में तुष्टीकरण के ऐसे कीर्तिमान स्थापित हुए हैं कि आतंकियों तक की पैरवी की गयी है। उनके परिवारों को मुआवजे के ऐलान हुए हैं। राजनैतिक पार्टियों ने वोटबैंक के लिए आतंकी घटनाओं में शरीक लोगों को भी छोड़ने का वादा किया है। बर्बर मुगलिया आक्रान्ताओं से लेकर कश्मीर के पत्थरबाज तलक बचाव किया गया है। कठुआ काण्ड में जानबूझकर बच्ची का नाम इसीलिए इस्तेमाल किया गया ताकि लोगों को बताया जाए कि एक मंदिर में मुसलमान बच्ची का बलात्कार हुआ। शिवलिंग, मंदिरों की भद्दी तस्वीरे आज भी इस जहन में बसी हुई हैं।
दंगाइयों, पत्थरबाजो से पीटने के बाद थानों में उत्पीड़न से तंग आकर जब बहुसंख्यक अपने हितों के लिए सरकार चुनने लगता है तो वो सांप्रदायिकता हो जाता है। तुम्हारी हरकतों से तंग आकर जब बहुसंख्यक समाज सवाल करता है तो तुम्हे उसमे हिन्दू मुसलमान नजर आता है।
एक पत्रकार सबा नकवी ने इस प्रकरण पर अपना दुःख साझा करते हुए बताया कि देश की जानी मानी दवाई कंपनियों के मालिक मुसलमान हैं। लोगों की मदद करने वाला अभिनेता मुसलमान है और सबसे बड़ा दानदाता भी मुसलमान है। सबा ये भी बता रही हैं कि ताजमहल भी मुसलमान है।
सबा जी, जिन लोगों का जिक्र आप कर रही हैं, वास्तव में उनसे किसी को तकलीफ है ही नहीं। तकलीफ तो असल में आपसे है, जो उन तबलीगी जमातियों के बचाव में लॉकडाउन से पहले के एक मंदिर के वीडियो को 15 दिनों बाद साझा करती हैं। असल तकलीफ आपकी इसी बौद्धिक जमात से है जो तबलीगियों प्रकरण सामने आने के बाद उनके बचाव में एक साल पुराने रामनवमी का वीडियो साझा करते हैं।
जाकिर नाईक के भाषणों को सुन लोग आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं लेकिन दूसरे धर्म का जमकर उपहास उड़ाने वाला शख्स तुम्हारा प्रेरणास्रोत है और उसके खिलाफ बोलना हिन्दू मुसलमान हो जाता है।
'भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह', अफजल तेरे खून से इन्कलाब आएगा' जैसे नारेबाजों समर्थन में जो कैम्पन चलाया है, वो सबने देखा है। असल समस्या यही है कि एक समुदाय विशेष के हर क्रूरतम अपराध का बचाव करने में तुम्हारी पूरी फौज जुट जाती है और आज इसी मानसिकता की सजा आम मुसलमान भुगत रहा है।
आरएसएस के खिलाफ बोलना हिन्दू मुसलमान नहीं है, भगवा आतंकी बोलना हिन्दू मुसलमान नहीं है, आतंकियों की पैरवी करना हिन्दू मुसलमान नही हैं, हिंदुत्व की कब्र खोदना हिन्दू मुसलमान नहीं हैं, लिंचिंग की घटनाओं में एक ही समुदाय के लोगों का जिक्र करना हिन्दू मुसलमान नहीं है, हिन्दू प्रतीकों का उपहास उडाना भी हिन्दू मुसलमान नहीं है।
फिर क्या है, हिन्दू मुसलमान? वही जो आप तय करेंगे? धर्मनिरपेक्षता, सांप्रदायिक सब आपके ही चश्मे से नापी जाएगी? किसका विरोध करना है और किसका नहीं करना है, सब आप ही बताएंगे।
इस हिन्दू मुसलमान की शुरुआत असल में आपने की है। लेकिन मैं जानता हूँ, आज समाज में वास्तव में जो हो रहा है वो तुम्हारी बहुत बड़ी कामयाबी है। तुमने जो मंसूबे पाले हुए हैं वो यहाँ तक सफल हो गए हैं। बस दिमाग में एक बात साफ रखना कि अब कोई 'डायरेक्ट एक्शन डे' नहीं होगा और न होगी कोई लाल क्रांति।
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