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सत्ता की हवस और मैं हीं सत्ता हूँ का दंभ ने एनडीटीवी को अराजक और अतिवादी बना रखा है।

एनडीटीवी अभी भी मानने को तैयार नहीं है, अब देश पर उसकी सत्ता नहीं है। जिसे वह अपनी सत्ता मानता था, अब वो अस्ताचल हो चुका है। कांग्रेसी सत्ता को हीं एनडीटीवी अपनी सत्ता मानकर चलता आया है और प्रछन्न रूप से देश पर राज करता आया है। राडिया टेप ने एनडीटीवी का कांग्रेसी सत्ता में किस कदर दखल था, उसको पूरी तरह उजागर कर चूका है। कांग्रेस सरकार में मंत्री तक की न्युक्ति एनडीटीवी के दफ्तर से होता था। यानी सत्ता के ईत्तर एनडीटीवी उस समय एक बड़ी सत्ता हुआ करता था। इसलिए एनडीटीवी उस सत्ता को बचा कर रखने के लिए कांग्रेस का पक्ष मजबूती के साथ लेता रहा।

अब जब कांग्रेस हार गया, इस हार को आदतन एनडीटीवी ने अपनी हार के रूप में ले लिया है। कांग्रेस से ज्यादा सत्ता जाने से एनडीटीवी मर्माहत दिख रहा है, इसलिए कभी अपना सक्रीन काला करता है, कभी भारत तेरे टूकड़े होंगे करनेवालों का साथ देता है।

एनडीटीवी ने भय और उपद्रव के द्वारा वर्तमान सत्ता को भी अपने मुठ्ठी में करना चाहा। एनडीटीवी यहीं पर भूल कर गया, ये सत्ता कोई ईसाई मिसनरीज द्वारा संचालित सत्ता नहीं है, जहां उसकी मनमानी चलता रहेगा। कानून और संविधान ने जितना अधिकार एक आम नागरिक को दिया है, वही एनडीटीवी और उसके मालिक प्रणव राय को। इसलिए एनडीटीवी अपने को भाग्य विधाता की भूमिका से जितना जल्दी हो बाहर निकले, अपने को हीं सत्ता मानने की मुगालते से निकले, उसकी सेहत के लिए यही अच्छा है।

एनडीटीवी दुसरे मिडिया संस्थानों से सीखे, सत्ता की दलाली किए बिना भी मिडिया हाउस चलाया जा सकता है, पत्रकारिता किया जा सकता है। राहुल गांधी हीं देश की सत्ता का वास्तविक हकदार है और नरेन्द्र मोदी आउट साइटेडसाइटेड है, ये सोच ये मानसिकता हीं एनडीटीवी को और ज्यादा रुग्न बना रहा है।

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