हिंदुओं के धार्मिक मामलों में त्वरित हस्तक्षेप करनेवाला न्यायपालिका, क्यों मुसलमानों के मसले पर हाथ जोड़े खड़ा है?
इस देश में हिंदुओं का दुश्मन कोई मुसलमान या इसाई नहीं है। हिंदुओं का सबसे बड़ा दुश्मन ये लोकतंत्र है, जिसके तीनों अंग कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका उसे बार-बार अहसास दिलाता रहता है, ये तुम्हारा देश नहीं, तुम्हारा कोई अधिकार नहीं, तुम हमारे लिए दोयम नहीं उससे भी बहुत निचे के नागरिक हो। जिस दिन हिंदू क्षुद्र स्वार्थों से उपर उठकर लोकतंत्र की इस निर्नाद को सुन लेगा, उसकी सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा।
जैसे कल सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मुसलमानों से जुड़े तीन मुद्दे बहु विवाह, हलाला और तीन तलाक पर सुनवाई करते हुए कहा, बहु विवाह और हलाला चुंकी धर्म से जुड़े मामले हैं इसलिए इसपर सुनवाई नहीं करूंगा। तीन तलाक भी यदि धर्म से जुड़े मामले पाए गए तो इस पर सुनवाई नहीं होगा। अभी तीन तलाक धर्म से जुड़े मामले हैं या नहीं केवल इस बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट की बहुप्रचारित बेंच सुनवाई करने को राजी हुआ है।
क्या कारण है हिंदुओं के धार्मिक मामलों में त्वरित हस्तक्षेप करनेवाले न्यायपालिका मुसलमानों के मसले पर हाथ जोड़ कर सर झुकाए, विनती के लहजे में दीन हीन खड़ा है?
क्या इसका भी दोष आप मुसलमानों को देंगे? नहीं इसका दोषी कोई मुसलमान नहीं लोकतंत्र की वो संरचना है, जो मुसलमानों और ईसाईयों को जितना फलने फूलने का मौका देता है, वही हिंदुओं को दबाने का कोई मौका छोड़ता नहीं है।
आपको क्या लगता है, इस लोकतांत्रिक ढांचे में कोई नरेंद्र मोदी हिंदू हितों को संरक्षण दे पाएगा? कभी नहीं, तीन साल के बाद भी एक भी फैसला बता दिजीए जो सरकार ने हिंदुत्व कोई संवर्धन के लिए कर पाया हो। क्या मोदी की मंशा नहीं है, हिंदुओं का उत्थान है? बिलकुल मंशा है, लेकिन उसके राह का रोड़ा ये लोकतांत्रिक माडल है जिसकी आधारशिला हीं हिंदुओं का विरोध है फिर कैसे कोई हिंदुओं को बलशाली बनाने का फैसला कर पाएगा।
अपना मानस बदलिए सच को स्वीकार किजीए रास्ता भी अपने आप खुल जाएगा। पहले बिमारी को पहचानिए, तभी समुचित इलाज हो पाएगा। बिमारी हो किसी अंग में और इलाज हो किसी अंग का फिर रोगमुक्त कैसे होंगे, बलशाली कैसे बनगें।
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