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संघ और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच

2002 में सुदर्शन जी के मार्गदर्शन में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना का रूपरेखा तैयार किया गया। 

वहीदुद्दीन खान सहित बड़े-बड़े मुसलमान मुफ्तियों ने इस विचार प्रक्रिया में शामिल हुआ। 
बाहरी उद्देश्य बताया गया, मुसलमानों में राष्ट्रीय सोच विकसित करना। इस्लाम के अच्छे गुणों को बाहर लाना।

इन 20 सालों के लंबे कालखंड में मुसलमान कितना राष्ट्रवादी बना ये तो दिल्ली से नागपुर तक दिखाई दिया है।

मुसलमान राष्ट्रवादी तो नहीं बना, लेकिन संघ को सेकुलर जरुर बना दिया। मोहन जी भागवत का लगातार बयान, " संघ हिंदुओं का ठेका नहीं ले रखा है, हर मस्जिदों को खुदाई करने की जरूरत क्या है आदि आदि" इसका उदाहरण है। संघ की दशा दिशा और मानसिकता समझा जा सकता है।

क्या संघ को एक  स्वेतपत्र नहीं लाना चाहिए जिससे स्पष्ट हो मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना अपने उद्देश्य में कितना सफल रहा है? यदि सफल नहीं रहा तो इसपर पुनर्विचार क्यों नहीं हो रहा।

आज मुस्लिम राष्ट्रीय मंच सरकार में मुसलमानों के घुसपैठ का एक माध्यम बन गया है। बहुत सधे तरीके से सच्चर कमीशन की एक एक रिपोर्ट को मोदी सरकार द्वारा लागू कराया जा रहा है।

सत्ता के मद में मदहोश व्यक्ति इन बातों को नहीं समझेंगे। सत्ता से इत्तर जो हिंदुत्व के वाहक संवाहक है वो जानते हैं और अपनी क्षमतानुसार आवाज भी लगातार उठा रहे हैं। 

आवश्यकता है और मुखर होने का।

जय श्रीराम

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