एच एच विल्सन: जबतक भारतवर्ष, विन्ध्य और हिमालय गंगा और गोदावरी रहेगी तब तक संस्कृत भाषा अवश्य रहेगी।
एच एच विल्सन: जबतक भारतवर्ष रहेगा, जब तक विन्ध्य और हिमालय रहेंगे, जब तक गंगा और गोदावरी रहेगी तब तक संस्कृत भाषा अवश्य रहेगी।
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विद्वान लेखक संपादक पंडित भवनाथ झा जी लिखते हैं : भारत में जब मैकाले की शिक्षानीति के अन्तर्गत अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार आरम्भ हुआ तो कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के संस्कृत के प्राध्यापक चिन्तित हो गये कि अब संस्कृत भाषा नहीं बचेगी। उनकी सबसे बड़ी चिन्ता थी कि अब संस्कृत के अध्यापकों को सरकारी सहायता नहीं मिल सकेगी। उन्होंने इस आशय का पत्र एच्.एच्. विल्सन को भेजा-
अस्मिन् संस्कृतपाठपद्यसरसि त्वत्स्थापिता ये सुधी
हंसा: कालवशेन पक्षरहिता दूरं गते ते त्वयि ।
तत्तीरे निवसन्ति संहितशरा व्याधास्तदुच्छित्तये
तेभ्यस्त्वं यदि पासि पालक तदा कीर्तिश्चिरं स्थास्यति ।।
अर्थात् इस संस्कृत के अध्ययन रूपी कमल से भरे जिस तालाब में आपने विद्वान् रूपी हंसों को स्थापित किया था वे समय के प्रभाव से अब पंख रहित (पक्षधर रहित) हो चुके हैं। उस तालाब के किनारे अब शिकारी तीर-कमान ताने उन्हें भगाने के लिए बैठे हुए हैं। हे पालन करने वाले आप यदि उनसे हमारी रक्षा करते हैं तो आपकी कीर्ति चिरस्थायिनी रहेगी।
पण्डितों का आशय जानकर विलसन महोदय ने उन्हें सान्त्वना देते हुए चार श्लोक लिखकर भेजा-
विधाता विश्वनिर्माता हंसास्तत्प्रियवाहनम्।
अतः प्रियतरत्वेन रक्षिष्यति स एव तान्॥
अमृतं मधुरं सम्यक् संस्कृतं हि ततोऽधिकम्।
देवभोग्यमिदं यस्मात् देवभाषेति कथ्यते॥
न जाने विद्यते किं तन्मधुरत्वं हि संस्कृते।
सर्वदैव समुन्मत्ता येन वैदेशिका वयम्॥
यावद् भारतवर्षं स्यात् यावद् विन्ध्यहिमाचलौ।
यावद् गङ्गा च गोदा च तावदेव हि संस्कृतम्॥
स्वयं ब्रह्मा विश्व के सिरजनहार हैं, हंस उनका प्रिय वाहन है। वह उन्हें बहुत प्रिय है अतः वे ही उनकी रक्षा करेंगे। अमृत मधुर होता है तो संस्कृत उससे भी अधिक मधुर है। यह देवों द्वारा उपभोग की जाने वाली भाषा है अतः इसे देवभाषा कहते हैं। मैं नहीं जानता कि संस्कृत में कैसी मधुरता है जिससे कि हम विदेशी लोग भी महेशा मदमत्त हो उठते हैं। जबतक भारतवर्ष रहेगा, जबतक विन्ध्य और हिमालय रहेंगे, जब तक गंगा और गोदावरी रहेगी तब तक संस्कृत भाषा अवश्य रहेगी।
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