पूर्वजों के मन्दिर नहीं होते, समाधि होते हैं।
पूर्वजों के मन्दिर नहीं होते, समाधि होते हैं।
समाधि पर बने चरण चिन्हों की पूजा की जाती है।पूर्वज हर समय नहीं पूजे जाते , अपने घर के खुशी के अवसरों या होली दिवाली जैसे बड़े त्योहारों पर याद किये जाते हैं।
इस्कॉन मंन्दिरों में स्वामी प्रभुपाद जी की प्रतिमा लगी होती हैं , मैंने कभी भी पूजा के भाव से उनको नहीं देखा।
अमृतसर में दुर्गियाना स्थित मंदिर में भी एक महिला की प्रतिमा देखी , उसके बाद में मैं मन्दिर के तालाब के किनारे जाकर बैठ गया।
इच्छवाकु वंश के तमाम प्रतापी और गौरवशाली राजाओं के होते हुए भी हम लोग केवल विष्णुजी लक्ष्मीजी और शेषनाग जी के अवतार रामसीता लक्ष्मण जी को ही पूजते हैं।
इनके जन्मदाता दशरथ जी, कौशल्या जी, सुमित्रा जी का कोई मन्दिर नहीं बनवाता , भरत शत्रुघन भी नहीं पूजे जाते।
द्वापर कालीन कृष्ण बलराम जी और राधा जी को ही हम लोग पूजते हैं। ये अवतार थे इसलिए हम अपना आराध्य और इष्ट मानते हैं।
यदि रामजी कृष्ण जी भगवान के अवतार ना होकर केवल मानव होते तो समस्त हिन्दुजनों के लिए महाराजा रघु, दिलीप,क्षदशरथ जी , या युधिष्ठर भीम अर्जुन की तरह सम्माननीय तो होते पूज्य नहीं होते ।
रामजी कृष्ण जी को पूर्वजों की श्रेणी में खड़ा करने से हम सगुणवादियों की आस्था और से मूर्ति पूजा पद्धति पर तरह तरह के सवाल खड़े करने से हम किसी को नहीं रोक पाएंगे।
✍️ गिलागो दादा
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