आततायी मुगलों के खिलाफ राजपुताना का संघर्ष।
मुगल बादशाहों में शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान हिन्दुओं के तीर्थकेन्द्र, उपासना स्थल, देवालय तथा मन्दिरों का बड़े पैमाने पर विनाश होना आरम्भ हुआ और जिसकी चरम परिणति नरपिशाच औरंगजेब के समय इतनी ज्यादा दिखी कि हिन्दू अस्मिता के अपहृत सभी मुख्य तीर्थकेन्द्र और पावन देवस्थान अपमान और दलन के स्मारक के रूप में आज तक ज्यों के त्यों मौजूद हैं !
उनकी आत्मप्रतिष्ठा तथा पुनर्वासन जब भी हो सकेगा, और जिस दिन होगा वह दिन हिन्दू जनमानस के जीवित व सतत विजयी होने का प्रमाण होगा...
और यह होगा।
ऐसे तमाम अनाम, अज्ञात और नामहीन अद्वितीय महाबली इस प्रेरणा और संकल्प को अतीत में भी जीवित व धारण करके चले थे और आज भी समाज मे मौजूद हैं ऐसे लोग।
ऐसे लोग चुपचाप हिन्दू जीवन धर्म के रक्षार्थ उत्सर्ग और बलिदान देते रहे हैं तथा उनके पवित्र रक्त के त्याग से यह हिन्दुत्व हजारों बाधाओं को पार करते हुए निरन्तर आगे बढ़ता रहा है।
बात हो रही है ऐसे अनाम, अज्ञात महाबलियों की।
तो शाहजहाँ के शासनकाल में उसकी बर्बरता और धार्मिक कट्टरता के चलते जब 1632 ईस्वी में नवनिर्मित हिन्दू धर्मस्थलों को विनष्ट करने सम्बन्धी राजाज्ञा जारी की गई तो इसका असर अन्य पावन स्थलों की तरह बनारस पर भी हुआ।
तत्समय बनारस के भीतर जहांगीर के शासनकाल के दौरान निर्मित होना शुरू हुए 76 नवनिर्मित मन्दिरों को तोड़ने के लिए इलाहाबाद के सूबेदार हैदर बेग को आदेशित किया गया।
शाहजहाँ के इस फरमान को तुरत फुरत क्रियान्वित करने के लिए नवम्बर 1632 ईस्वी में हैदर बेग ने अपने चचेरे भाई को बड़ी लावलश्कर के साथ भेजा।
उक्त घटना का चश्मदीद गवाह प्रसिद्ध अंग्रेज यात्री पीटर मुंडी है।
3 दिसम्बर 1632 ईस्वी को मुगलसराय जाने के दौरान पीटर मुंडी ने बनारस में एक पेड़ से एक आदमी को फांसी पर लटकते देखा।
पूछताछ करने पर उसे इस आदमी की फाँसी के कारण का पता चला।
पीटर मुंडी हालाँकि अपनी प्रसिद्ध कृति "दि ट्रेवल्स ऑफ पीटर मुंडी" (भाग 2, pp 178, सम्पादित टेम्पिल, लन्दन, 1914) में पेड़ से लटकने वाले फाँसी पाये उस व्यक्ति के नाम का उल्लेख नहीं किया है। लोगों ने पूछताछ के दौरान नामोल्लेख कर पाने में असमर्थता जताई होगी, इसीलिए नाम अज्ञात ही रहा।
यह पेड़ से लटकाया गया व्यक्ति कौन था ?
पीटर मुंडी लिखता है :
【यह सदियों से हिन्दू धर्म और उसके आत्मगौरव के रक्षक क्षत्रिय जाति से सम्बन्धित एक राजपूत योद्धा था। जब इलाहाबाद के सूबेदार हैदरबेग ने अपने चचेरे भाई को बादशाह के दीनी फरमान को पूरा करने के लिए भेजा तब इस दुर्दान्त योद्धा ने सेना और सूबेदार के भाई से उन 76 पावन देवालयों को बचाने के लिए गोपनीय व्यूहजाल बिछाकर भीषण मुठभेड़ की।
इतना ही नहीं इस अनाम अतुलनीय राजपूती वीर ने सूबेदार और उसके पांच साथियों को अपनी तलवार से यमलोक पहुँचा दिया।
इतना ही नहीं अपने आराध्य और धर्म के रक्षार्थ जीवन होम करने के पहले अपने फरसे से उसने 4 लोगों का गला कतर डाला।
अंत में काशी के मान सम्मान की रक्षा करते हुए वह असाधारण महाबली बर्बरों की भीमकाय सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ !
बर्बरों ने मरने के बाद भी उसकी लाश को पेड़ से लटकाया !】
पीटर मुंडी ने उसी अनाम, अज्ञात राजपूत योद्धा का जिक्र 3 दिसम्बर 1632 ईस्वी कालखण्ड में किया है।
है इतिहास की पुस्तकों में कहीं नाम इस अतुलनीय बलिदान और उत्सर्ग का !
धर्म, राष्ट्र, आत्मगौरव, जातीय अस्मिता बोध के लिए लड़ते लड़ते पूर्वजों में से न जाने कितने महान लोग अनाम, अज्ञात ढंग से बलिदान देकर इतिहास के अलिखित अपठित पृष्ठों के भीतर विलीन हो गए...
कृतघ्न, आत्महीन हिन्दू आज आत्मस्वार्थ में अहर्निश डूबे हुए निजी हित पूर्ति के अलावा एक चवन्नी योगदान समाज, धर्म और राष्ट्र के हितार्थ देते नहीं, थूथुन उठाकर गाली देते रहते हैं उन महान पूर्वजों को...
उनकी कृतज्ञता से तो उऋण भी न हो सकेंगे हम सब कभी !
मैं आज के समस्त कुत्सित व आत्महीन धकड़पेल इतिहासकारों के इतिहास लेखन सम्बन्धी पुस्तकों व शोध सामग्री को लानत मारता हूँ पीटर मुंडी के इस एक दृष्टान्त के सम्मुख....
सतीशचन्द्र का समस्त ऐतिहासिक लेखन तथा इरफान हब्बीब और हरवंश मुखिया की सारी बकवाद कमाई इस एक ऐतिहासिक उद्धरण के सम्मुख रखने लायक तक नहीं है...
नमन उस अनाम, अज्ञात वीर बलिदानी महाबली को जिसने हमारे धर्म और आत्मगौरव के रक्षार्थ ऐसा अनुपमेय दृष्टान्त हिन्दू जाति के सम्मुख रखा !
जय भारत।💐💐
✍️ कुमार शिव
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