जब पंडित नेहरू ने खरबपति डालमिया को मिट्टी में मिला दिया
यादों के झरोखे से
देश के प्रथम प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप में अपने विरोधियों को निपटाने में माहिर थे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस व्यक्ति ने नेहरू के सामने सिर उठाया उसी को नेहरू ने मिट्टी में मिला दिया। देशवासी प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष बाबू के साथ उनके निर्मम व्यवहार के बारे में वाकिफ होंगे मगर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपनी जिद्द के कारण देश के उस समय के सबसे बड़े उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को बड़ी बेरहमी से मुकदमों में फंसाकर न केवल कई वर्षों तक जेल में सड़ा दिया बल्कि उन्हें कौड़ी-कौड़ी का मोहताज कर दिया।
जहां तक रामकृष्ण डालमिया का संबंध है वे राजस्थान के एक कस्बा चिड़वा में एक गरीब घर में पैदा हुए थे और मामूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने मामा के पास कोलकाता चले गए थे। वहां पर बुलियन मार्केट में एक दलाल के रूप में उन्होंने अपने व्यापारिक जीवन का श्रीगणेश किया था। भाग्य ने डंटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए। उनका औद्योगिक साम्राज्य देशभर में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमान सेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैंकड़ों उद्योग शामिल थे।
डालमिया सेठ के दोस्ताना रिश्ते देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं से थी और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना उनके व्यक्तिगत और गहरे मित्रों में थे। पाकिस्तान के निर्माण के बाद सेठ डालमिया ने जिन्ना के नई दिल्ली स्थित बंगले को दस लाख रूपये में खरीदा था जो उस वक्त एक बड़ी रकम मानी जाती थी। जिन्ना के साथ डालमिया की दोस्ती नेहरू को फूटी आंख नहीं भाती थी। इसके बाद एक घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी कृपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे। कृपात्री जी महाराज ने 1948 में एक राजनीतिक पार्टी राम राज्य परिषद स्थापित की थी। 1952 के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने 18 सीटों पर विजय प्राप्त की। हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई। पंडित नेहरू अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को उनके पति फिरोज गांधी से तलाक दिलाने के लिए हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी कृपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे। हिन्दू कोड बिल और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्वामी कृपात्रीजी महाराज ने देशव्यापी आंदोलन चलाया जिसे डालमिया जी ने डंटकर आर्थिक सहायता दी। नेहरू के दबाव पर लोकसभा में हिन्दू कोड बिल पारित हुआ जिसमें हिन्दू महिलाओं के लिए तलाक की व्यवस्था की गई थी। कहा जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद हिन्दू कोड बिल के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकृति देने से इनकार कर दिया। जिद्दी पंडित नेहरू ने इसे अपना अपमान समझा और इस विद्येयक को संसद के दोनों सदनों से पुनः पारित करवाकर राष्ट्रपति के पास भिजवाया। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति को इसकी स्वीकृति देनी पड़ी।
इस घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि नेहरू ने अपने विरोधी सेठ राम कृष्ण डालमिया को निपटाने की एक योजना बनाई। नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया। इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना। बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट को जांच के लिए सौंप दिया गया। नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया। उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया। उन्हंे अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया। नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया। उन्हें टाइम्स आॅफ इंडिया और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेंचना पड़ा। अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन साल कैद की सजा सुनाई गई। तबाह हाल और अपने समय के सबसे धनवान व्यक्ति डालमिया को पंडित नेहरू की वक्र दृष्टि के कारण जीवन के अन्तिम दिनों में जेल के कालकोठरी में ही गुजारनी पड़ी।
व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया। पुत्र रत्न को प्राप्त करने के लिए डालमिया ने अपने जीवन में छह विवाह किए मगर लाख अनुष्ठान करने के बावजूद वे पुत्र रत्न का मूंह न देख पाए। उनके घर केवल लड़कियां ही पैदा हुईं। नेहरू की कोप दृष्टि के कारण एक लाख करोड़ का मालिक अपने अन्तिम दिनों में कौड़ी-कौड़ी का मोहताज हो गया। उसकी सारी सम्पत्ति और सभी उद्योग बिक गए। गरीबी की हालत में 1978 में 85 वर्ष की आयु में उनका दिल्ली में निधन हो गया।
(आदरणीय Manmohan Sharma जी के फेसबुक वाल से साभार ...)
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