माफी मांगना घुटने टेकना नहीं होता है ।
स्वामी सूर्यदेव : माफी मांगना घुटने टेकना नहीं है,,,
एक अपनी घटना बताता हूँ,,वैदिक गुरुकुल में जब था तो एक समूह दो चार लोगों का महाभृष्ट और लड़कीबाजों का भी था वहां पर,, समूह का नेता वहां का सीनियर था तो गुरुकुल प्रांगण में नवयौवनाओं के साथ कुछ भी करने की एक मौन छूट उसे ऊपर से मिली ही हुई थी,,
एकबार हरियाणा के भिवानी जिले से कुछ दो पांच लड़कियां आई या बुलाई गई या अन्य कोई कारण रहा लेकिन खूब हुड़दंग मौज मस्ती चल रही थी,, मैंने सिर्फ इतना कहा कि यह सब का मैं व्यक्तिगत जीवन में विरोधी नहीं हूं,,
आप जो करेंगे वह स्वयं भोगेंगे ही यह तय है,, लेकिन सार्वजनिक तौर पर यह सब प्रदर्शित करना विशेषकर गुरुकुल जैसे पवित्र स्थान में यह अशोभनीय है,, असल में हमने भी अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया था--क्या वेश्यालय समझ रक्खा है गुरुकुल को,,
मैं नया था,,दब्बू न होने और अतिशय उग्र स्वभाव के कारण अकेला भी,,और वे तो वहां व्यवस्था के हैड थे,, मुझे शाम को गुरुकुल कार्यालय बुलाया गया,, वहां वही चांडाल चौकड़ी पहले से विद्यमान थी,, मुझपर आरोप लगाया गया कि वे हमारी बहनें थी और इसने उन्हें वैश्या कहा,,व्यवस्थापक ने कहा कि आपका अपराध गम्भीर है और आपको गुरुकुल से निकालना पड़ेगा,,
मुझे एकदम फ़िल्म की तरह सबकुछ घूम गया आंख के सामने,, यह भी कि क्या करने किस उद्देश्य से गुरुकुल आया हूँ और निकाल दिया गया तो आचार्य बनने का सपना तो बिखर ही जाएगा,,मुझे यह भी पता था कि मैं सही दिशा में हूँ और ये लोग सालों से यह सब गुरुकुल में करते आ रहे हैं और अब भी चल रहा है,, लेकिन लक्ष्य बड़ा था जो इस सामान्य से पचड़े में पड़कर नष्ट होने जा रहा था,,
मैंने कहा कि मैं माफी मांगता हूं,, मैंने वैश्या नहीं कहा लेकिन फिर भी अगर कई लोग कह रहे हैं कि कहा--तो मैं हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं,, ऐसी गलती फिर कभी नहीं होगी,, अगर ऐसी गलती मैं दोबारा करूँ तो मुझे गुरुकुल से निकाल दिया जाए,, बल्कि मैं स्वयं चला जाऊंगा वादा करता हूँ,, आप सब लोगों से मैं पुनः माफी मांगता हूं,, मुझे गुरुकुल में रहने का एक अवसर दें,, वे लोग हठ पर अड़े थे कि निकालो इसे,, मैंने फिर माफी मांगी हाथ जोड़कर,,
जो लोग मुझे व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं कि मैं और माफी,, यह ऐसा है जैसे दिन में अंधेरा होना,, यह ऐसा है जैसे अग्नि का ठंडा होना,, यानी असंभव सा,, लेकिन सत्य तो यही है कि बड़े लक्ष्य के लिए जीवन चाहिए और समय भी,, अगर उसे माफी मांगकर बचाया जा सकता है तो यह कोई बड़ी कीमत नहीं है नीतिशास्त्र के अनुसार,,
बाद में उस एक घण्टे तेईस मिनट के टॉर्चर के बाद मुझे अपने कमरे में भेज दिया गया,,लेकिन वह एक घण्टे तेईस मिनट की रिकार्डिंग भी उन लोगों ने पता नहीं कहाँ और कैसे मोबाईल छुपाकर कर ली थी,, बाद में उसमें से साढ़े पांच मिनट की कटिंग कर करके निकाली गई,, और गुरुकुल में जो भाई मोबाईल रखते थे उनके मोबाइलों में भेजी गई,, पूरे गुरुकुल में एक माहौल बनाया गया कि जैसे मैंने कोई जघन्य अपराध किया है जिसकी मैं माफी मांग रहा हूँ और आगे अपराध होने पर स्वयं गुरुकुल छोड़ने कह रहा हूँ,,
मुझे स्मरण है वह आत्मग्लानि का क्षण जब हर आंख मुझे देखकर अजीब तरह से हंस रही थी और मुँह पर सहानुभूति दिखाते हुए पूछ रहे थे कि क्या हुआ है?? जीवन में इतनी सघन आत्मपीड़ा से मैं कभी नहीं गुजरा जब सही होते हुए भी यह सब झेलना पड़ा,, उस रात कमरे में देर तक रोता रहा,,
बाद में धीरे धीरे गुरुकुल में सत्य पता चला और सैकडों ब्रह्मचारी हमारे पक्ष में असल में सत्य के पक्ष में होते चले गए तो उस ग्रुप के हैड को कुछ दिन के लिए मामला ठंडा हो जाए तबतक निकाला गया,, हम सात साल वहां रुके रहे,, वैदिक दर्शनों उपनिषदों में आचार्य हुए,, आज मातृभूमि की सेवा जिस भी रूप में कर पा रहे हैं यह सौभाग्य है,, उसदिन माफी न मांगते तो आज हम यहां तक नहीं होते,,
आत्मग्लानि और आत्मपीड़ा से आत्मगौरव और आत्मसंतोष के मार्ग पर आने में समय लगा लेकिन यह संभव हुआ यह सुख है,,, परमात्मा की दया का यह जीवंत प्रमाण है,,
माफीवीर,,उनके प्रवक्ता डिबेट में कहते रहते हैं बार बार,,चिल्लाकर कहते हैं मैं सावरकर नहीं हूं,,सच में माफी वीरों का काम है नपुंसको का नहीं,, इसके लिए हृदय चाहिए और स्वयं को गलाकर तपाकर और निखरने देने के लिए विश्वात्मा के हाथों में सौंप देने का अदम्य साहस,,,जाओ बच्चे सावरकर होना तुम्हारे बस का भी नहीं,,,
ॐ श्री परमात्मने नमः। *सूर्यदेव*
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