कैलाश टेम्पल रहस्यमय क्यों है ?
🌸कैलाश मन्दिर का रहस्य🌸
विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य
बेसाल्ट पत्थरों को काटना और उसे तराशना ,पत्थरों पर अद्वितीय मूर्तियों को उत्कीर्ण करना अत्यधिक कठिन कार्य है।
मंदिर के नीचे कई गहरी गुफाएं और कक्ष ,तहखाने है
17 या 18 साल तक 4 लाख टन पत्थरों को वो भी 7000 लोगों के द्वारा और नीचे तहखाने ,गुफाओं का निर्माण कार्य , तराशना, मूर्तियों को उत्कीर्ण करना वह भी अलंकरण के साथ कैसे सम्भव हो सकता है।
5:- अगर 7000 लोग 12 घण्टे बिना रुके काम करते हैं, तब भी वे 17 या 18 साल में केवल 85000 टन पत्थरों को ही काट सकते है।
6:- मानव जाति के क्रमिक विकास को देखते हुए पुरातत्विक दृष्टि से पाषाण युग का मानव भी इतना बलिष्ट या औसत ऊंचाई 6 या 7 फिट से ज्यादा नहीं रही थी। ऐसे में पौराणिक मान्यता में महामानव का होना संदेह उत्पन्न करता है।
7:- गुफाओं में एक निश्चित स्थान से रेडिएशन कैसे आ रहे हैं।
कुछ लोगों का दावा है कि कैलाश मंदिर का निर्माण एलियंस ने किया क्यों ?
वो क्यों करेंगे ?
ऐसा कहना अपने महान पुर्वजों की असाधारण क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाना है,जो कि एक अपराध है।
अब प्रश्न यह उठता है कि, कोई पराग्रही इन संरचनाओं और उच्चतम स्तर की मूर्तियों का निर्माण कार्य क्यों करेगा? क्या वें शिवभक्त थे .? क्या वें हिन्दू धर्म के अनुयायी थे .?
एलोरा गांव की चरणानंद्री पहाड़ियों को काटा गया था। एलोरा का प्राचीन समय का नाम वैरुलनी लैनी था । यह इला गंगा नदी के पास स्थित हैं। हमारे देश में पत्थरों पर नक्काशी की समृद्ध परंपरा है सातवीं सदी ई. में यहां पर शिल्पकारों का समुदाय रहता था। इनका शिल्प कला का कार्य वंशानुगत था । पिता से पुत्र को यह कला मिलती थी। राजस्थान में यह परंपरा आज भी है। कैलाश मंदिर का निर्माण कार्य उपर से नीचे की ओर किया गया है।
यहां पर मूर्तियों को देखकर पता चलता है कि, इन मूर्तियों को अलग अलग समयावधि ने उत्कीर्ण किया गया है
पत्थर की नक्काशी की शास्त्रीय परम्परा, वास्तुकला के साथ घनिष्ठ संबंध है । ये एक दूसरे से जुड़ी हुई है।
एलोरा में कैलाश मन्दिर रहस्यमय माना गया है। मंदिर विज्ञान और पुरातत्व के वैज्ञानिकों के लिए रहस्यमय बना हुआ है । यह मन्दिर हमारे प्राचीन भारत के गौरव शाली इतिहास का अद्भुत आर्किटेक्ट है । इस मंदिर का निर्माण कार्य राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम की पत्नी ने करवाया था। जहां तक निर्माण कार्य का प्रश्न है , वह इस मंदिर के अभिलेखों के अभाव में साबित नहीं हो रहा । एक अभिलेख है ,जो इतना ज्यादा खराब हो चुका है, कि इसे पढ़ पाना मुश्किल है। इसे पढ़ा ही नहीं गया।
किसी भी आर्किटेक्ट का जब निर्माण कार्य होता हैं ,तो वह भूमि पर नींव से शुरु होता है । और शिखर तक सम्पूर्ण होता है। यहां बिल्कुल ही अलग परिस्थिति है, मंदिर का निर्माण कार्य शिखर से शुरु हुआ ,और भूमि पर सम्पूर्ण हुआ।
यहां पर पत्थरों को काट -काट कर उन्हें खोखला किया गया, तराशा गया , अलंकरण किया गया । स्तम्भ,द्वार ,मूर्तियां सभी अद्भुत है। इसके अलावा बारिश के पानी की निकासी के लिए नालियों के साथ पानी स्टोरेज सिस्टम भी बनाया गया है। मंदिर के नीचे बहुत गहराई तक गुफाओं ,तहखानों ,कक्षों का निर्माण कार्य किया गया है। अंडर ग्राउंड रास्ते बनाये गए सबकुछ अकल्पनीय अद्वितीय है।
इस पहाड़ी से लगभग 400000 टन पत्थरों को काटा गया । पुरातत्वविदों की मानें तो 7000 लोग 150 साल तक ऐसा निर्माण कार्य कर सकते है। लेकिन स्त्रोतों की मानें तो महज यह मन्दिर 17 साल में बन कर तैयार हो गया था। जिस तरह से मन्दिर का निर्माण कार्य हुआ, पत्थरों की बहुत बारीक कटिंग की गई । ऐसा प्रतीत होता है कि, कोई लेज़र किरणों से इन्हें काटा गया था। इतनी सूक्ष्म अलंकृत मूर्तियों का निर्माण कृष्ण प्रथम के समय में किया गया था। लेकिन ऐसे उपकरण उस समय उपलब्ध नहीं थे। कैलाश मंदिर जिसे दुनिया भर का रहस्यमय मन्दिर कहा जाता हैं, यह मंदिर देखने मे जितना अद्भुत दिखता है ,इसे बनाने की कला उतनी ही रहस्यमय है। इसमें जितने रहस्य मंदिर के साथ जुड़े हुए हैं। इससे कहीं ज्यादा रहस्य मन्दिर की गुफाओं में है। कुछ दशकों पहले तक कुछ गुफाएं आम पर्यटकों के लिए खुली हुई थी, वो आज पूरी तरह से शासकीय आदेश से पुर्णतः बंद कर दी गई हैं। आखिर क्यों..…....??
कृष्ण प्रथम कोई गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे । उनकी पत्नी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि "मेरे पति जब-तक ठीक नहीं हो जाते मैं अन्न ग्रहण नही करूंगी , साथ ही यह संकल्प लिया था कि, जब तक शिवालय का शिखर न देख लू तब तक अन्न ग्रहण नहीं करूंगी" मंत्रियों ने सलाह दी थी कि, ऐसा मंदिर निर्माण कार्य मे कई वर्ष लग जाएंगे ,आप इतने दिनों तक कैसे यह व्रत रख पाओगी। मंत्रियों की आपात बैठक हुई और बहुत कम समय में मंदिर निर्माण कार्य की योजनाएं बनने लगी । निर्णय लिया गया कि, मन्दिर का निर्माण कार्य किसी पहाड़ी को ऊपर से काट कर शुभारंभ करते है ,पहले शिखर निर्माण किया गया, लेकिन महारानी का व्रत संकल्प पूर्णतः मंदिर निर्माण कार्य से था । ऐसे में स्वयं महारानी ने भगवान शिव से प्रार्थना की ,कि भगवान शिव उनकी मन्दिर निर्माण कार्य में मदद करें। भगवान शिव ने एक उपकरण जिसे ""भौम अस्त्र "" कहा गया , यह उपकरण मंदिर के निर्माण कार्य में बहुत तेजी से उपयोग में लाया गया था। कहा जाता हैं कि, यह उपकरण लेज़र कट कर वेस्ट मटेरियल को भाप बना कर आसमान में उड़ा दिया करता था। इधर कृष्ण प्रथम बिल्कुल स्वस्थ हो गए थे । जब मंदिर के निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ था । तब यह ""भौम अस्त्र""मंदिर के तहखानों में गाड़ दिया गया था।
साल 1876 में इंग्लैंड की हिस्टोरिकल स्पेशलिस्टों की एक टीम ने इस मंदिर का दौरा किया ,एम्मा हेंड्रिक् ने अपनी किताब में कैलाश मन्दिर की गुफाओं में एक आर्किलोजिस्ट के बारे में लिखा है कि , यह मंदिर जितना बाहर से दिखाई देता है, इससे कई गुना ज्यादा विशाल , मंदिर के नीचे तहखाने और गुफाएं है । आर्किलोजिस्ट की रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि, गुफाओं में रेडिएशन है । यहाँ नीचे तहखानों की गुफाओं में एक स्थान से रेडियो एक्टिविटी तरंगे निकल रही हैं। जिसकी वजह से यहां पर ज्यादा समय तक रुकना असम्भव है । यह मंदिर इस्टइंडिया कम्पनी के कब्जे में था । अब यहां पर खोज करने के लिए केवल अंग्रेज आर्किलोजिस्ट को ही परमिशन दी गई ,भारतीय आर्किलोजिस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारतीय शोधकर्ताओं का कहना है कि कैलाश टेम्पल से इस्टइंडिया कम्पनी धन संपदा ले गई थी। औऱ साथ ही वह उपकरण " भौम अस्त्र " भी ले गई थी। और इस बात के सबूत आज भी यहां पर मिल सकते है।
लेकिन कैलाश टेम्पल की इन गुफाओं को अंग्रेजों ने बंद कर दिया था । और इससे जुड़ी रिसर्च को भी नष्ट कर दिया गया था। और सरकारी तौर पर इन गुफाओं की रिसर्च पर प्रतिबंध लगा दिया था। शासकीय औपचारिकता में बताया गया था कि, इन गुफाओं में फ़िसलन वाली ढलान है ,यहाँ पर रेडिएशन है । इसलिए यहां पर जाने पर जान का जोखिम है ।इसलिए इन गुफाओं को बंद कर दिया गया है।
इस मंदिर की ऊंचाई 90 फिट है ,और लंबाई 276 फिट है ,चौड़ाई 54 फिट है । यह मापदंड मंदिर का है, वैज्ञानिकों का मानना है कि, इस मापदंड से कई गुना अधिक इस मंदिर के नीचे तहखाने और गुफाएं है । मन्दिर निर्माण कार्य पत्थरों को जोड़ कर नहीं किया गया है। बल्कि एक ही पहाड़ी में पूरा मंदिर बनाया गया है।
आर्किलोजी डिपार्टमेंट और जिओलॉजी डिपार्टमेंट की टीम मन्दिर के नीचे ईसा पूर्व के अवशेषों का दावा करती हैं इनका कहना है कि, यहां नीचे तहखानों में पूरा एक नगर बसा हुआ था। यहां पर आम लोगों का जाना वर्जित हैं। कैलास मंदिर को नष्ट करने के लिए औरंगजेब ने 1682 में हजारों सैनिकों को भेजा था। लेकिन इस मंदिर को नष्ट करने में वे असफल रहे।
कैलास मंदिर की सबसे रहस्यमय बात यह है कि, मंदिर की छत दुनिया भर की सबसे बड़ी केटिलिवर छत है । वैसे तो कई प्राचीन काल के मंदिर भारत की गरिमा और गौरवशाली अतीत, उत्तकरष्ट प्रतिभावान शिल्पांकन और शिल्पकारों का विशाल और अलंकरण मूर्ति निर्माण ,मन्दिर निर्माण कार्य का कोई भी जवाब पूरी दुनिया भर में कोई भी आर्किटेक्ट नहीं दे सकता है। लेकिन कैलाश मंदिर का निर्माण कार्य अन्य निर्माण कार्य से बहुत ज्यादा अलग है। मंदिर की दीवारों और स्तम्भो के मध्य वार्तालाप की तरंगें इक्को नही बल्कि आवाजे रिपीट होती है। जबकि इन गलियारों और स्तम्भो से बाहर खुला हुआ मंदिर का विशाल प्रांगण है , आवाज़ का इक्को। या रिपीटेशन वहीं होता है ,जहां बंद हॉल हो या फिर एक जगह से आवाज़ लगाने पर ठीक सामने पहाड़ी हो और इस के बीच खाई हो । यहां लगभग डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में कई गुफाएं है ।गुफ़ा नम्बर 16 से 4 लाख टन पत्थरों को काटा गया था। 17 साल में प्रत्येक शिल्पकार ने 5 टन पत्थरों को काटा होगा , 7000 लोगों ने 17 या। 18 सालों में इस मंदिर का पूर्णतः निर्माण कार्य सम्पन्न किया गया होगा । तब भी इस निर्माण कार्य को पूर्ण होने में 100 साल लगे होंगे । 18 सालों में 7000 शिल्पकार बिना रुके 12 घण्टे तक काम करते है तो भी वे 100 साल में मात्र 85000 टन पत्थरों को ही काट सकते है। यह कैसे संभव हुआ.....?? उस पर तहखानों का निर्माण कार्य भी शामिल है.....??? अत्याधूनीक मशीनों से भी इस काम को करना असंभव है ।
तो भव्य अलंकृत ,तहखानों युक्त मन्दिर जा निर्माण कार्य किसने किया..…?? विज्ञान की नजर से यह असंभव है। 400000 टन वेस्ट पत्थर मंदिर के आसपास क्यों नहीं है।
अगर इंसानों ने यह निर्माण कार्य किया है तो मैरी नजर से यह सन्देहास्पद है । क्योंकि अक्सर देखा गया है कि, वेस्ट मटेरियल से शिल्पकार अन्य छोटे मन्दिर बना दिया करते थे। लेकिन यहां पर कही भी दूर दूर तक कोई पत्थर का निशान नहीं है। ऐसा क्यों..? साहित्यक स्त्रोतों के अनुसार यहां पर बेसाल्ट पत्थरों को काटा गया है ,जो काफी मजबूत होता है । सातवाहन राजाओं के काल में यहां पर 600 ई . में गुफाओं का निर्माण कार्य आरंभ हुआ था।
हमारी प्राचीन ,इंजीनियरिंग ,प्रौद्योगिकी ,से सम्बन्धित सभी दस्तावेज नालन्दा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में थे । उस काल मे यह विश्वविद्यालय पूरी दुनिया का शिक्षा का केंद्र था । यहां पर उच्चतम शिक्षा व्यवस्था थी । 1193 बख्तावर खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था। नालन्दा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय कितना विशाल था ,इसका अनुमान इस बात से चल रहा था कि, आग लगने के 3 महीने तक यहाँ पर रखी पुस्तकें जलती रही थी। इस पुस्तकालय में इंजीनियरिंग,तकनीकी ,ज्योतिषी, खगोलीय, शल्यचिकित्सा, शिल्प कला शास्त्र और भी विभिन्न प्रकार की पांडुलिपियां थी । और आगे की जनरेशन को इन महान ज्ञान से वंचित होना पड़ा ।
इसी वजह से आज हम अपने पौराणिक ग्रन्थों को साबित नहीं कर पा रहे हैं।
कैलाश मन्दिर के पांच चरण है। ( ॐ न म शी वा य ।। ) यह पाँच अक्षरों का प्रतिनिधित्व करते है। स्वर्ण मंदिर के 28 स्तम्भ है जो शिव की 28 पूजा अर्चना प्रकिया या तरीकों को दर्शाते हैं। इस मंदिर की छत के 64 बीम, 64 कलाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्रॉस बीम मानव शरीर के माध्यम से चलने वाली रक्त संचार का प्रतिनिधित्व करती हैं। सुनहरी छत के ऊपर 9 बर्तन 9 प्रकार की शक्ति (नवरात्रि) का प्रतिनिधित्व करती हैं। बगल के हॉल में 18 स्तम्भो 18 पुराणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। नटराज की प्रतिमा भगवान शिव के तांडव नृत्य उर्जा ( प्रोटॉन, न्यूट्रॉन) के ब्रह्मांडीय नृत्य को दर्शाता हैं। हमारे पूर्वजों ने मंदिरों के निर्माण कार्य में इन सभी बातों का ध्यान नहीं रखा होगा
इस प्रकार के कार्यों के लिए गणितीय, खगोलीय, इंजीनियरिंग की प्रतिभा उन महान ,वास्तुकार ,महान शिल्पकार ,महान मूर्तिकार सभी को नमन
🔥⚔️🔥जय श्री राम 🔥⚔️🔥
(सपना सिंह के वाल से साभार)
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